Friday 23 December 2011

तिरे सवाल के यूं तो जवाब इतने हैं

किताबे जीस्त में ज़हमत के बाब इतने हैं 
ज़रा सी उम्र मिली है अज़ाब इतने हैं .

जफा फरेब तड़प दर्द ग़म कसक आंसू ..
हमारे सामने भी इन्तखाब इतने हैं 

समन्दरों को भी पल में बहाके ले जाए
हमारी आँख में आंसू जनाब इतने हैं

नकाबपोशों की बस्ती में शख्सियात कहाँ
हरेक शख्स ने पहने नकाब इतने हैं

हमारे शेर को दिल की नज़र की हाजत है ...
हरेक लफ्ज़ में हुस्नो-शबाब इतने हैं

हमें तलाश है ताबीर की मगर हमदम
छिपा लिया है सभी कुछ ये ख्वाब इतने हैं

कभी ज़ुबान खुली तो बताएँगे हम भी
तिरे सवाल के यूं तो जवाब इतने हैं

.तमाम कांटे भरे हैं हमारे दामन में
तुम्हारे वास्ते लाये गुलाब इतने हैं

मैं चाह कर भी नहीं कर सकी कभी पूरे
तुम्हारी आँख में पोशीदा ख्वाब इतने हैं

कभी ज़ुबान खुली तो बताएँगे हम भी
हमें जनाब से लेने हिसाब इतने हैं

\वफ़ा के बदले वफ़ा क्यूँ 'सिया' नहीं मिलती
सवाल एक है लेकिन जवाब इतने हैं

Tuesday 20 December 2011

चाहने वाले ज़माने में कहाँ मिलते हैं

ढूंढिए लाख मगर दोस्त कहाँ मिलते हैं 
जिस तरफ जाइए बस दुश्मन ए जां मिलते हैं 

मेरे एहसास मेरे दिल को जवां मिलते हैं 
मुस्कुराते हुए मिलते हैं जहाँ मिलते हैं 

जुस्तजूं रहती हैं खुद को भी हमारी अपनी
खो गए हम तो किसी को भी कहाँ मिलते हैं

उन से कह दीजे मेरे प्यार की कुछ कद्र करें
चाहने वाले ज़माने में कहाँ मिलते हैं

आज तो छावं में बैठी हूँ अपने आँगन में
वक़्त की धूप के क़दमों के निशाँ मिलते हैं

गुफ़्तगू का ना सलीका है ना आदाब कोई
आज के दौर में क्या एहले _जबां मिलते हैं

जां लुटा देने की जो करते हैं बाते अक्सर
वक़्त पड़ जाये तो वो लोग कहाँ मिलते हैं

मेरी खुद्दार तबीयत को गवारा ही नहीं
वहाँ चलना जहां क़दमों के निशाँ मिलते हैं .

पहले अश'आर सिखा देते थे जीने की कला -
आजकल ऐसे खयालात कहाँ मिलते हैं

ढलते सूरज को जो देखूं तो ख्याल आता है
उम्र ढलने के भी चेहरे पे निशाँ मिलते हैं

चंद चेहरे जो चमकते है बहुत महफ़िल में
उनको तन्हाई में देखो तो धुवां मिलते हैं

सिल गए होंठ मेरे ज़ख्म सिलें या ना सिलें
इश्क वालों को सिया दर्द यहाँ मिलते हैं

siya

सभी ने जुबां पर लगाए हैं ताले .

यही कह रहे हैं सभी अज्म वाले 
मुझे आजमा ले मुझे आजमा ले .

यहाँ सच का जैसे रिवाज उठ गया है
सभी ने जुबां पर लगाए हैं ताले .

न मंदिर से निस्बत न मस्जिद से रिश्ता
जले घर मैं चूल्हा , मिलें दो निवाले .

भरोसा है या रब तिरी रहमतों का
ये जीवन की कश्ती है तेरे हवाले .

पडोसी है भूखा ये सोचा नहीं है
तो किस काम के हैं ये मस्जिद शिवाले .

किसी माँ का दिल कैसे ये सह सकेगा
कि बच्चों का घर और खाने के लाले .

Monday 12 December 2011

फिर से जीने की आरज़ू होगी.

बात होगी तो रू -ब- रू होगी
आँखों आँखों में गुफ्तगू होगी .

बात चलती रहेगी ग़ालिब की
मीर की भी कभू कभू होगी .

सामने मेरे जब भी तुम होगे
फिर से जीने की आरज़ू होगी.

जिस में मंजिल का कोई ज़िक्र न हो
एक ऐसी भी जुस्तजू होगी..

काम आएगी मेरी जिंदादिली -
जब कभी मौत रू -ब -रू होगी

आपको मैं संभाल कर रक्खूं .
इसमें मेरी भी आबरू होगी .

हर क़दम फूँक फूँक रखना सिया
सब की नज़रों में सिर्फ तू होगी .

Thursday 8 December 2011

मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं

उसके हर ज़ुल्म को किस्मत का लिखा कहते हैं 
जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं 

है इबादत किसी इन्सां से मोहब्बत करना 
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत को खता कहते हैं 

और होंगे जिन्हें किस्मत से नहीं कोई उमीद
मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं

मांगना भीख गवारा नहीं खुद्दार हूँ मैं
मेरी खुद्दारी को क्यूँ लोग अना कहते हैं

कारवां वालों को इंसान की पहचान नहीं
जिसने भटकाया उसे राहनुमा कहते हैं

देखते ही जिसे ईमान चला जाता है
हाँ उसी को किसी काफ़िर की अदा कहते हैं

उनका अंदाज़े सितम भी है बहुत खूब सिया
ज़हर को ज़हर नहीं कहते दवा कहते हैं

Monday 21 November 2011

किस ज़बां से उसको अनजाना कहूं


पहले अपने दिल को दीवाना कहूं 
फिर कहीं चाहत का अफसाना कहूं 


बारहा कहता है मुझ से मेरा दिल 
मैं तेरी आँखों को मयखाना कहूं 


कब से मेरे दिल में रहता है वोह शख्स 
किस ज़बां से उसको अनजाना कहूं 


मुझको  सच  कहने  की  आदत  है बहुत   
कातिलो  को  कैसे  दीवाना  कहू ..


कहता है दिल कम से कम इक बार तो 
शमा उस को खुद को परवाना कहूं 


जाने कब से  खुश्क है आंखे तेरी 
किस तरह  मैं  इसको मयखाना कहू  


ज़ेहल के  जो  लोग  पैरोकार हैं चाहते  है 
चाहते हैं मैं  उन्हें  दाना  कहू 


उस की मूरत बस गयी दिल में सिया 
फिर ना क्यूं इस दिल को बुतखाना कहूं

Friday 18 November 2011

नए ज़माने का बच्चा कमाल करता है



जरा सी बात पे इतने वबाल करता है 
वो इस कदर मेरा जीना मुहाल करता हैं

हर एक बात पे सौ सौ सवाल करता है 
नए ज़माने का बच्चा कमाल करता है 

वो बाज़ आएगा ए दिल न अपनी आदत से  
तू किस उम्मीद पे शौक़ -ए -विसाल करता है 

पशेमां खुद भी  है वो अपनी बेवफाई पे 
वो जुल्म करता है और फिर मलाल करता है  
  
पसीना बनके जो उभरा है मेरे माथे पर 
यही लहू मेरी रोजी हलाल करता है

हमेशा उसने नवाज़ा हैं दर्द _ओ_ ग़म से मुझे 
वो मेरे शौक का कितना खयाल करता हैं

जो थाम लेता है खुद बढ़के हाथ मुफलिस के 
खजाने उसके खुदा मालामाल करता है

सिया मैं क्या कहू अब और उसके बारे में
वो नेकियां भी बड़ी बेमिसाल करता है


Friday 11 November 2011

अब तो बस मसरूफियत के ही बहाने रह गए

आपके जो साथ गुज़रे, वो ज़माने रह गए
चंद यादें रह गयीं और कुछ फ़साने रह गए

आपको अब हमसे मिलने की कोई चाहत नहीं
अब तो बस मसरूफियत के ही बहाने रह गए

आप हैं हरजाई , कोई आज है तो कल कोई
आपके तो हम दीवाने थे , दीवाने रह गए

आग में चाहत की जलने से तो मिलता है करार
जो किये थे मुझसे वादे वो निभाने रह गए

लुट ली दुनिया ने तेरे प्यार की दौलत मगर
अब तेरी यादों के बस दिल में खजाने रह गए

ए "सिया " उम्मीद क्या रखे ज़माने से कोई
हमको देने के लिए दुनिया पे ताने रह गए 

Thursday 10 November 2011

एक बिरहन को मगर तडपा गया


प्यार  का मौसम  जहाँ  को भा गया 
कुछ दिलों  को और  भी  तडपा गया  
 
आई  है  कुछ  देर  से  अबके  बहार 
फूल  कब  का शाख  पर मुरझा  गया 
 
कारखानों  से  जो  निकला  था धुवां 
शहर  में  बीमारियाँ  फैला  गया 
 
एक नेता  था  वोह और  करता भी  क्या 
मसले  वो सुलझे हुवे  उलझा  गया 
 
तब  वो  समझा  लूटना  इक  जुर्म  है 
सेठ  के  हाथों  से  जब  गल्ला  गया 
 
क्या  हुआ  ऐसा  किसी ने  क्या  कहा 
उनके माथे  पे पसीना  आ  गया 
 
था  हसीं  मौसम  बहारों   का  :सिया :
एक  बिरहन  को  मगर  तडपा   गया 
 

खुदा के लिए अब ना मुझको सताए


खबर तेरी लायी है महकी हवाए 
ये शादाब मंज़र ये बहकी फिजाए 

ना रह पाए दिल पे मेरा कुछ भी काबू  
बना दे दीवाना ये काफिर अदाए

चले आओ कितना हसी है ये मौसम 
ये रिम झिम सी बरसे है काली घटाए 

तुम्ही मेरी हसरत हो जाने तमन्ना 
खुदा के लिए अब ना मुझको सताए 

मैं देखू की बदली में कैसा हैं चंदा 
जरा रुख से अपने ये जुल्फे हटाये 

हो उसके लबो पे 'सिया 'मेरी बाते 
मैं कह दू ग़ज़ल और वो गुनगुनाये 

अब तो हो जाए ख़ुदारा मेहरबानी आपकी

कब तलक आखिर रहेगी बे -ज़ुबानी आपकी ,
अब तो हो जाए ख़ुदारा मेहरबानी आपकी

आपका तर्ज़ ए सुखन हम को न रास आया कभी
दिल जला देती है अक्सर हक बयानी आपकी

आपका एहसास ही तो जिस्म-ओ-जां और रूह है
क्या किसी ने की है ऐसी क़द्रदानी आपकी

इसलिए हरदम ही रहती हूँ नफासत के करीब,
जिंदगी को भी समझती हूँ निशानी आपकी .

ज़ख़्म जैसे बन गए हो आपबीती ए सिया
कर ही देते हैं बयां ये हर कहानी आपकी

जो कहनी ना हो वोह बात कह जाती हूँ मैं

रोज़  शब्  होते ही उसके घर को महकाती हूँ  मैं
बन के खुशबू उसके आँगन में बिखर जाती हूँ मैं

लोग कहते हैं भुलाना चाहता है वोह मुझे
इसका मतलब है के उसको अब भी याद आती हूँ मैं

ए मेरे महबूब आता है तो  फिर  जाया ना कर

 तुझ से इक पल भी बिछड़ जाऊ तो घबराती हूँ मैं

मेरी आँखें बोलती रहती हैं सच  मैं क्या करू

 उस से जो कहनी ना हो वोह बात कह जाती हूँ मैं

क्या  बताऊँ ज़िन्दगी  ने  क्या  दिया मुझको  सिया
रोज़ औरों के  गुनाहों की सजा पाती हूँ  मैं 


Sunday 6 November 2011

सजदे में तेरे जिंदगी मेरी तमाम हो


ले दे के इस हयात में बस एक काम हो
मेरी जुबां से ज़िक्र तेरा सुब्ह ओ शाम हो

मैं उम्र भर तेरी ही इबादत में बस रहू 
सजदे में तेरे जिंदगी मेरी तमाम हो 

खिलते रहे चमन में मोहब्बत के फूल ही 
दुनिया में नफरतों का न कोई निजाम हो 

रुसवा जो हो गए हैं बहुत कमनसीब हैं 
ये कौन चाहता हैं जहाँ में न नाम हो 

हम तो तुम्हारे वास्ते करते हैं इक दुआ
सबके लबों पे आपका उम्दा कलाम हो 

नेकी की राह से कोई भटके न अब सिया 
अच्छाइयों का रास्ता इतना तो आम हो

Wednesday 2 November 2011

या रब बुरा किसी का न सोचूँ मैं ख्वाब में

तुम ने मुझे लिखा था जो ख़त के जवाब में
महफूज़ कर लिया है वह दिल की किताब में

दुख दर्द में हमेशा जो आता है सब के काम
दे दीजे उस को लफ्ज़ फ़रिश्ता ख़िताब में

दिल को किसी के मुझ से न तकलीफ़ हो कभी
या रब बुरा किसी का न सोचूँ मैं ख्वाब में

तेरी नज़र ने कर दिया मदहोश दिल मेरा
ऐसा नशा कहाँ है किसी भी शराब में

मिलके भी उस से हम रहे मेहरुमे दीद_ए_यार
उस ने छुपा के रक्खा था चेहरा नकाब में

दिन में भी मेरे घर में अँधेरा रहा :सिया:
वैसे तो रौशनी थी बहुत आफ़ताब में

Friday 28 October 2011

वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं

छुप छुप के ज़माने से आँखों को भिगोते हैं
हम दिन में तो हँसते हैं पर रात में रोते हैं

तू ग़ैर का हो जाये और हम को क़रार आये
यह दर्द तो वो जाने जो अपनों को खोते हैं

बस फ़िक्र में दौलत की,हैं ऊंचे मकां वाले
उनसे तो ग़रीब अच्छे जो चैन से सोते हैं

अंजाम बुराई का होता है बुरा यारो
वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं

करते हैं "सिया" उसकी तस्वीर से हम बातें
तनहाई में रह कर भी तनहा नहीं होते हैं

Sunday 23 October 2011

कुछ भी दुनिया में नहीं मिलता मुसीबत के सिवा

कुछ भी दुनिया में नहीं मिलता मुसीबत के सिवा
और कोई राह नहीं राह-ए-मोहब्बत के सिवा

ये अलग बात की मैं बोल दूँ हँस कर सबसे
पर मुझे कुछ नहीं भाता तेरी सूरत के सिवा

बारहा देख के मुझको ये ख्याल आया है
तेरी तस्वीर में क्या रक्खा है हैरत के सिवा

अब न पूछो मेरी ख्वाहिश या तमन्ना का मिज़ाज
शिद्दतें और भी हैं प्यार की शिद्दत के सिवा

तुझ से बस इतनी गुज़ारिश है "सिया " की जानाँ
कुछ न दे मुझको मेरी जान मोहब्बत के सिवा
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Thursday 20 October 2011

हर बुराई से हमें उबार तू


ऐ ख़ुदा बस इक मेरा गमख्वार तू
इन ग़मों से रफ़्ता रफ़्ता तार तू 

इक तेरे दीदार की हसरत मुझे 
तू मेरी हर सांस में , संसार तू 

इक हसीं दुनिया बनाई आपने 
बन्दे क्यों करता रहा बेकार तू 

ये ख़ुशी सच्ची तुझे मिल जाएगी 
किसलिए मन हो रहा बेज़ार तू 

लोग नफ़रत की तिजारत में मगन 
इनके दिल में दे दया और प्यार तू

राह नेकी और भलाई की दिखा 
हर बुराई से हमें उबार तू 

ए खुदा तुमसे ये मेरी इल्तेज़ा 
भटकी कश्ती हूँ लगा दे पार तू

ज़िन्दगी नेक राह हो जाये

ज़िन्दगी नेक राह हो जाये
माफ़ मेरा गुनाह हो जाये

हौसले अपने साथ रख लेना
रात जब भी स्याह हो जाये

किसी मजलूम को सताना न
दिल से निकले तो आह हो जाये |

दर्दमन्दो के दर्द बांटे जो
तो खुदा की निगाह हो जाये

प्यार से जिंदगी बिताये 'सिया'
सबको जीने की चाह हो जाये

उम्र हर हाल में बितानी है॥

माना बेरंग ज़िन्दगानी है
उम्र हर हाल में बितानी है॥

इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार
ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है॥

हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ
याद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥

भीगा मौसम है अब तो आ जाओ
देखो फसलों का रंग धानी है॥

उनके कूचे से होके आई :सिया:
यह हवा इस लिए सुहानी है॥

Sunday 16 October 2011

आज मेरा दिल न जाने, इतना क्यूँ उदास है
!इक घुटन सी दिल में हैं कैसा ये एहसास है

रौशनी भी अब दियों की, फूंकती है घर मेरा
आग को भी मेरे घर से, दुश्मनी कुछ खास है

मैं तेरी तस्वीर दिल में, रख रही हूँ आज तक
इक तसव्वुर से ही तेरे जागती ये प्यास है

साथ तेरा गर मिले, किस्मत से शिकवा ना रहे
आये मुश्किल ज़िन्दगी में वो भी हमको रास है

क्यूं मुझे ठुकरा रहे हो, आप दौलत के लिए
वो कहाँ मुफ़लिस है आख़िर इश्क जिसके पास है

मैं "सिया" हूँ ज़िन्दगी से प्यार मुझको है बहुत
मुझको तो हर एक पल से बस ख़ुशी की आस है

मेरी बन्दगी का का सवाल है

तू ही ख्व़ाब तू ही ख़याल है
तू जवाब तू ही सवाल है

तेरा साथ कैसे मैं छोड़ दूं
मेरी बन्दगी का का सवाल है

तू जो दूर हो तो मैं क्या करूं
मुझे सांस लेना मुहाल है

तेरा रूप जैसे के चाँद हो
के तू चांदनी की मिसाल है

न किसी का ऐसा हसीन रुख
न किसी का ऐसा जमाल है

कभी आ के इतना तो देख ले
तेरे बिन "सिया" का जो हाल है

मेरा केडा घर वे रब्बा .....



इक ही गल बस सुनदी आई धीए तू ते हैं परायी
अपने ही जद कहन पराया दुखदा है दिल अख भर आई

धी दा वी ते भैन दा वी मैं सारे फ़र्ज़ निभादी आई
क्यों अपनी होंदे होए, कुडिया नु सब कहन परायी

व्या के जद दूजे घर आई ओथे वि मैं रही परायी
सबनू खुश करने दी खातिर मैं ता अपनी उम्र गवाई

मैं ता सारे फ़र्ज़ निभाए,पर किसी ने मेरी कदर ना पाई
धीया पुत्तर व्या दित्ते ने, घर विच हुन हैं नू मेरी आयी

माँ लगदी हुन बोझ जिन्ना नु ओना दे वी नाल निभाई
इक औरत दा घर हैं केडा आज तक मैंनु समझ ना आयी

रोकता रहा ज़मीर वैसे ख़ता से पहले

सोच लीजिए इन 'नाज़-ओ-अदा' से पहले
न जाये मर खामखाँ कोई क़ज़ा से पहले

ख़ताएँ जारी रही तमाम उम्र यूं ही
रोकता रहा ज़मीर वैसे ख़ता से पहले

हो सके तो देखना कभी नजदीक आकर
बरसात होती है कैसे घटा से पहले

यकीन दिलाऊं तुझे कैसे ऐ 'जां-ए-जाना'
थे चैन से हम इस 'दौर-ए-वफ़ा' से पहले

वह फ़क़त रंग ही भर्ती रही अफसानों में
सब पहुंच भी गए मंजिल पे 'सिया' से पहले

ज़िंदगी का लम्हा लम्हा प्यार में


ऐसे इन्सां कम ही मिलते हैं हमें संसार में
जो बिताएं ज़िंदगी का लम्हा लम्हा प्यार में

क्या बताएं हिज्र की शब किस तरह से की बसर
"करवटें लेते रहे शब भर फ़िराक़े यार में"

क्या करूं अब उसके पीछे पीछे चलना है मुझे
मेरा बेटा मुझ से आगे बढ़ गया रफ़्तार में

तेरा इमान ऐ बशर इक क़ीमती सामान था
चंद सिक्कों के लिए बेचा जिसे बाज़ार में

इश्क वाले ऐ :सिया: कब इश्क से बाज़ आयेंगे
कोई राजा लाख चुन्वाए उन्हें दीवार में

दिल से खालिक़ की इबादत चाहिए

कब हमें उनकी इनायत चाहिए
सिर्फ थोड़ी सी मोहब्बत चाहिए

खुवाब तो हमने भी देखे हैं बहुत
ज़िंदगी में कुछ हकीक़त चाहिए

बन्दगी को चाहिए दिल का ख़ुलूस
दिल से खालिक़ की इबादत चाहिए

उम्र भर सुब को नसीहत शेख़ जी
आपको भी कुछ नसीहत चाहिए

ऐ सिया क़दमों को मां के चूम लो
तुम को गर दुनिया में जन्नत चाहिए

Tuesday 11 October 2011

तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥

जो सीने में धड़कता दिल न होता
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥

अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥

किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥

नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥

ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥

:सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥

Thursday 6 October 2011

हम तो बेघर हैं किधर जायेगे

जिनके घर हैं वो तो घर जायेगे
हम तो बेघर हैं किधर जायेगे

ये खुला आसमाँ हैं छत मेरी
इस ज़मीन पर ही पसर जायेगे

हम तो भटके हुए से राही है
क्या खबर है की किधर जायेगे

आपके ऐब भी छुप जायेगे
सारे इलज़ाम मेरे सर जायेगे

नाम लेवा हमारा कौन यहाँ
हम तो बेनाम ही मर जायेगे

न कोई हमनवां न यार अपना
हम तो तनहा है जिधर जायेगे

ए 'सिया' मत कुरेद कर पूछो
फिर दबे ज़ख्म उभर जायेगे

Sunday 2 October 2011

फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए


फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए 
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए 

इस जहाँ में कोई ग़म ख्वार होना चाहिए 
सबके दिल में प्यार ही बस प्यार होना चाहिए 

तेज़ चलने के लिए मुझसे ही क्यूं कहते है आप
आप को भी कुछ तो कम रफ़्तार होना चाहिए

ग़मज़दा देखे मुझे और हंस पड़े बेसाख्ता
क्या भला ऐसा किसी का यार होना चाहिए

उफ़ तेरा तिरछी नज़र से मुस्कुरा कर देखना 
तीर नज़रों का जिगर के पार होना चाहिए 

खुद परस्ती हर तरफ फैली है इतनी क्यों 'सिया
' न किसी की राह में दीवार होना चाहिए

मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥

सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ
दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥

कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं
राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥

अपने नग़मे गाती हूँ तनहाई में
वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ॥

प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है
अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ

तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है
मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥
मनमंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"
आशाओं के दीप जलाती रहती हूँ॥

Saturday 24 September 2011

जगह इक ऐसी बताओ जहाँ खुदा ही न हो

यह तुम से किस ने कहा है कोई ख़ता ही न हो
बस इतनी शर्त है दुनिया को कुछ पता ही न हो

गुनाह करना है सबकी निगाह से बच कर
जगह इक ऐसी बताओ जहाँ खुदा ही न हो

हम अपने दौर के इन रहबरों से बाज़ आये
वह क्या दिखाएगा रस्ता जिसे पता ही न हो

वह कैसे समझे ग़मे इश्क का मज़ा क्या है
के जिस ने दर्दे मोहब्बत कभी सहा ही न हो

"सिया" वह शख्स करेगा किसी से ख़ाक वफ़ा
के जिस के दिल में कोई जज़ब्ये वफ़ा ही न हो
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Thursday 22 September 2011

प्रार्थना


हे जगत निर्माणकर्ता 
कुछ हमें भी ज्ञान दो..
सच बड़ा दुखी है    मानव 
आप आकर ध्यान दो .....

सब रहें खुशहाल भी 
और सब रहें आनंद में 
ये  कहें दोहें सभी 
ये सार भी है छंद में 
इस धरा पर जो भी आये 
आप उसको मान दो.......

न कोई छोटा, बड़ा हो 
इस तेरे संसार में 
हर कोई जीवन गुज़ारे 
बस इबादत प्यार में 
आदमी को आदमी सा 
आप ही सम्मान दो .......

हो कई रूपों में लेकिन
तुम नज़र आते नहीं 
हो अखिल संसार में 
बस मेरे घर आते नहीं 
मुझपे भी कल्याण की 
चादर ज़रा सी तान दो ....

हर घड़ी तेरा ही ख्याल रहा

रात दिन बस मेरा यह हाल रहा
हर घड़ी तेरा ही ख्याल रहा

ज़ुल्म में तू भी बेमिसाल रहा
सब्र में मेरा भी कमाल रहा

मैं हूँ बरबाद और तू आबाद
कब मुझे इसका कुछ मलाल रहा

उस से मैं उम्र भर न पूछ सकी
दिल का दिल में ही इक सवाल रहा

मुझ से इक दिन भी वो खफा न हुआ
कितना अच्छा यह मेरा साल रहा

साथ उसका था हर कदम पे सिया
फिर भी दिल ये मेरा निढाल रहा

तनहा ही भटक जाएंगे


अब जो बिखरे तो फिजाओं में सिमट जाएंगे 
ओर ज़मीं वालों के एहसास से कट जाएंगे 

मुझसे आँखें न चुरा, शर्म न कर, खौफ न खा 
हम तेरे वास्ते हर राह से हट जाएंगे 

आईने जैसी नजाकत है हमारी भी सनम 
ठेस हलकी सी लगेगी तो चटक जाएंगे 

हम-सफ़र तू है मेरा, मुझको गुमाँ था कैसा 
ये न सोचा था कि तनहा ही भटक जाएंगे 

प्यार का  वास्ता दे कर  मनाएगी 'सिया' 
मेरे  जज़्बात से कैसे वो पलट जाएंगे

जीने के बहाने आ गए

सामने आँखों के सारे दिन सुहाने आ गए
याद हमको आज वह गुज़रे ज़माने आ गए

आज क्यूँ उन को हमारी याद आयी क्या हुआ
जो हमें ठुकरा चुके थे हक़ जताने आ गए

दिल के कुछ अरमान मुश्किल से गए थे दिल से दूर
ज़िन्दगी में फिर से वह हलचल मचाने आ गए

ग़ैर से शिकवा नहीं अपनों का बस यह हाल है
चैन से देखा हमें फ़ौरन सताने आ गए

उम्र भर शामो सहर मुझ से रहे जो बेख़बर
बाद मेरे क़ब्र पे आंसू बहाने आ गए

हैं "सिया' के साथ उसके शेर और उसकी ग़ज़ल
हाथ अब उसके भी जीने के बहाने आ गए

Wednesday 14 September 2011

आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है

क्यों वह ताक़त के नशे में चूर है
आदमी क्यों इस क़दर मग़रूर है।

गुलसितां जिस में था रंगो नूर कल
आज क्यों बेरुंग है बेनूर है।

मेरे अपनों का करम है क्या कहूं
यह जो दिल में इक बड़ा नासूर है।

जानकर खाता है उल्फ़त में फरेब
दिल के आगे आदमी मजबूर है।

उसको "मजनूँ" की नज़र से देखिये
यूँ लगेगा जैसे "लैला" हूर है।

आप मेरी हर ख़ुशी ले लीजिये
मुझ को हर ग़म आप का मंज़ूर है।

जुर्म यह था मैं ने सच बोला "सिया"
आज हर अपना ही मुझ से दूर है।

अपनी माँ को याद करते हुए एक बेटी ने अपने जज़्बात लिखे हैं


माँ तू साथ हैं मेरे तुझे मेरे हर ग़म की खबर है 
 बिन तेरे है धूप कड़ी और मुश्किल  सफ़र है 

सर पे मेरे आज तेरी ममता की ठंडी छावं नहीं 
कैसे  झुलसा सा मन कैसी ये तपिश का असर है 

रात को सोते हुए ख्वाब से जब मैं  घबरा जाती 
क्यों घबराए  मैं पास हूँ लाडो, किस बात का डर है 

जब से गयी तू मां मैंने कभी ना खाया मन से 
 हाथो में जो स्वाद तेरे, वो ना किसी में  हुनर है 

आज सिया के पास नहीं तू ,तेरी यादे है बाकी 
माँ तुझसा कोई भी तो आता ना नज़र है 

हिंदी दिवस पर...

क्यों दिखावे का ये जीवन ढ़ो रहे हो!
नकली चेहरा क्यों लगा के रो रहे हो!
जो विरासत में मिली हिंदी हमें हैं,
उस धरोहर को भला क्यों खो रहे हो!
नाम अपने देश का हिन्दुस्तान हैं
भूल कर उसको कहाँ तुम सो रहे हो
दे रही आवाज तुमको मातृभूमि
अपनी हिंदी के ही दुश्मन हो रहे हो!"

"
आज हिंदी दिवस पर संकल्प लें कि, हमे अधिकाधिक रूप में हिंदी को व्यव्हार लाना है! राष्ट्रभाषा के गौरव को, जीवित रखना है!"



अपनी तहजीब जुबान अपनी न खो जाये कहीं
इस विरासत को सलीके से सभाले रखना

विश्व हिंदी दिवस पर यह संकल्प लीजिये
अपनी मात्रभाषा हिंदी को नव जीवन देगे ...

Sunday 11 September 2011

यह डर लगता है

काम कुछ ऐसा न कर जाऊं यह डर लगता है
दिल से तेरे न उतर जाऊं यह डर लगता है
फासले मुझको हैं मंज़ूर मगर ऐ हमदम 

जीते जी खुद ही न मर जाऊं ये डर लगता हैं

बड़ी मुश्किल से संभाला है दिल_ए _नादाँ को 
अब कहीं फिर न बिखर जाऊ यह डर लगता है

सकूं नसीब है जब तक तुम्हारे साथ हूँ मैं
बिछड़ के तुझसे किधर जाऊ यह डर लगता है

ए सिया दीद का वादा जो किया हैं मैंने
देख के उसको न मर जाऊ ये डर लगता है

Friday 9 September 2011

सब का ग़म अपना ग़म बनाना है

ज़िंदगी इस तरह बिताना है
अश्क पीना हैं मुस्कुराना हैं

आज फिर उसके पास जाना है
एक रूठे को फिर मानना है

हो के औरों के दरद-ओ-ग़म में शरीक
सब का ग़म अपना ग़म बनाना है

सिर्फ अपने गले लगे तो क्या
गैर को भी गले लगाना है

दर्द में कोइ मेरे साथ नहीं
साथ खुशियों में यह ज़माना है

जिस्म पर सर रहे, रहे न रहे
झूठ को जड़ से ही मिटाना हैं

क्यों सिया ज़ख्म चाहती हो नया
अपनी हिम्मत को आज़माना है ?...

Monday 5 September 2011

अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ!

मैं हिफाज़त से तेरा दर्दो अलम रखती हूँ
और खुशी मान के दिल में  तेरा ग़म रखती हूँ।

मुस्कुरा देती हूँ जब सामने आता है कोई
इस तरह तेरी जफ़ाओं का भरम रखती हूँ।

हारना मैं ने नहीं सीखा कभी मुश्किल से
मुश्किलों आओ दिखादूं मैं जो दम रखती हूँ।

मुस्कुराते हुए जाती हूँ हर इक  महफ़िल में
आँख को सिर्फ़ मैं तन्हाई में नम रखती हूँ

है तेरा प्यार इबादत मेरी  पूजा मेरी
नाम ले केर तेरा मंदिर में क़दम रखती हूँ।

दोस्तों से न गिला है न शिकायत है "सिया"
क्यों के मैं अपनों से उम्मीद ही कम रखती हूँ!

Thursday 1 September 2011

दिल दी गल्ला लोका नू सुनावा क्यों..


हाल दुनिया नू अपना मैं वखावा क्यो
दिल  दी गल्लां लोका नू सुणावा क्यों 

मेरा वजूद, मेरा गुमान, मेरी गैरत 
किसी दी नज़र विच खुद नू गिरावां क्यों 

मैं आप वेखदी या की कमी मेरे अन्दर 
मैं किसी होर ते इलज़ाम लगावां क्यों 

कोई यकीन करके, राज़ दे दसदा अपना 
छुपा लया दिल विच किसी नू बतावा क्यों 

बड़े नसीब नाल मिलदे ने सच्चे यार लोगों 
जे मिला दित्ता रब ने ओसनू भुलावा  क्यों 

Wednesday 31 August 2011

दिल को क्यों करते हो छोटा
ना हो तुम इस कदर निराश!

आंसू तो मोती होते हैं,
रखो इनको अपने पास!

किसने जाना दर्द पराया
क्यों दूजे से रक्खे आस

दामन इतना फैला ले तू
दुःख भी आये तुझको रास

सुख दुःख आते जाते रहते
क्यों होती हैं सिया उदास

जीवन-बगिया के माली


जीवन-बगिया के माली तुम रूठ कंहा को  चले गए |
बचपन बीता प्यार बिना ,तुम कौन जहाँ को चले गए
    माँ की ममता मिली ना बाबुल का दुलार ही  पाया
     दर्द यहीं रह रह के दिल में उभर उभर के आया 

   दुःख सहने को दुनिया के तुम  छोड़  ओ बाबुल चले गए 

कोई अपने बच्चो को देता दुलार, देख हम तरसा किये
छुपा लिए आंसू वो हमने ,जो छुप छुप आंख से  बहा किये 
सर पर अपने कड़ी धूप हम बिन साए के फिरा किये 
कौन यहाँ पर दर्द हमारा  माँ बाबा सा समझा किये 


स्याह अँधेरा दिल में मेरे,तुम दीप जलाने कहा गए 


ओ माँ तेरे आँचल की ठंडी छावं को ढूढे ये मन मेरा
रात अमावस सी लगती हैं बिन तेरे सूना सा दिन
मुरझाये  फूलो से हैं हम,बिन माली उजड़ा सा चमन
 आज तेरी बेटी तनहा है, तेरी दुआ बिना खाली दामन


कर के सूना घर आंगन तुम छोड़ के तनहा चले गए

आह लबो से निकले क्यों  रूठ गयी हमसे तकदीर
दिल में छुपाये रहते हैं.कौन सुनेगा  मन अपने पीर
 नूर छिना चेहरे से , हरदम रहते हैआँखों में नीर
यादे बाकि रह गयी, धुधली पड गयी हैं तस्वीर


बिन तेरा रीता जीवन तुम कौन देस को चले गए 
 


Monday 29 August 2011

दोस्तों ने बहुत सताया है !

इन तुजुर्बो ने ये सिखाया है
ठोकरे खा के इल्म आया है

क्या हुआ आज कुछ तो बतलाओ
क्यों ये आंसू पलक तक आया है !

दुश्मनों ने तो कुछ लिहाज़ किया
दोस्तों ने बहुत सताया है !

आसमां, ज़िंदगी, जहाँ, हालात
हम को हर एक ने आज़माया है !

अब रुकेंगे तो सिर्फ़ मंजिल पर
सोचकर यह क़दम उठाया है !

ऐ "सिया" हम हैं उस मक़ाम पर आज
धूप है सर पे और न साया है !

मेरा दम निकल जाये


मेरे दिल को कभी इक पल न भूले से क़रार आये
सितम इतने करो मुझ पर के मेरा दम निकल जाये

ज़बां पर इस लिए पहरा लबों पर इस लिए ताले
जो सच्ची बात है ऐसा न हो मुंह से निकल जाए

मैं तुम से बाख़बर और तुम रहे हो बेख़बर मुझ से
मेरी क़िस्मत में ही कब हैं तुम्हारे प्यार के साये

बसा है जब से इक इन्सां का चेहरा मेरी आँखों में
वह मुझ से दूर हो फिर भी मुझे हर पल नज़र आये

मेरा मायूस दिल यूं तो "सिया" ख़ामोश रहता है
धड़कता है मगर उस पल किसी की याद जब आये

Thursday 25 August 2011

ये कैसा प्यार है तेरा समझ में कुछ नहीं आये

सितम इतने किए तूने कि मेरा दम निकल जाये
ये कैसा प्यार है तेरा समझ में कुछ नहीं आये

ज़ुबान पर आपने ताले लगाये इसक़दर मेरी
जरा से गुफ्तगू को भी हमारा दिल तरस जाये

सनम तुझको मेरी परवाह आख़िर क्यूं नहीं होती
तुम्हारे हर कदम पर हैं मेरी चाहत के जब साये

बस एक चेहरा तुम्हारा बसा है मेरी आँखों में
बिछड़ के आपसे हमको नज़र कुछ भी नहीं आए

वो जब भी याद आये, सिया का दिल धड़क जाये
तुम्हारे साथ ये लम्हे बता दे क्यों नहीं पाए

इक दिन याद आएगी तुम्हे कीमत हमारी

दिलों से खेलना ठहरी जो आदत तुम्हारी
यकीन करना सभी पर ये फितरत हमारी

खिलौना जान कर दिल को ठोकर मारते है
लगे तुमको भी ठोकर इक दिन हसरत हमारी

खुदा के घर में है इन्साफ इतना याद कर लो
की इक दिन याद आएगी तुम्हे कीमत हमारी

ना पाओगे दुबारा इतना तुमने दिल दुखाया
मुझे भी दूर ले जाएगी ये नफरत तुम्हारी

हमें रुसवाई का डर है तुम्हे ना फर्क कोई
सिया के संग जाएगी ये हकीकत तुम्हारी

Wednesday 17 August 2011

शाम को भी जो घर नहीं आई


उफ़ मैं इतना भी कर नहीं पाई
प्यार में तेरे मर नहीं पाई


सबका ग़म बांटती रही अब तक
अपने ग़म से उबर  नहीं पाई


जिंदगी तुझसे हूँ मैं शर्मिंदा
रंग जो तुझ में भर नहीं पाई


मैंने इक इक शय  संवारी हैं
सिर्फ किस्मत संवर नहीं पाई


मैंने उल्फत निभाई हैं तुझसे
तुमसे लेकिन वफ़ा नहीं पाई  


कितनी मज़बूत है ये आस मेरी
टूट कर भी बिखर नहीं पाई


मैं हूँ इक ऐसी सुबह की भूली
शाम को भी जो घर नहीं आई


कह तो ली  हैं ग़ज़ल सिया तुने
रंग शेरो में भर नहीं पाई


Uff main itna bhi ker nahiN payee
Pyar men tere mar nahiN payee


Sub ka gam banTtee magar ab tak
Apne Gham se ubhar nahin payee


Zindagee tujh se hooN main sharmindah
RuNg jo tujh meN bhar nahiN payee


maine ulfat nibhayi hain tujhse
tumse lekin  wafa nahi payi


MaiN ne ek ek shay saNwari hai
Sirf qismat sanwar nahiN payee


Kitni mazboot hai yeh meri aas
TooT ker bhi bikhar nahiN payee


Main hoon ik aise subHa ki bhoolee
Sham ko bhi jog har nahiN aayee


Kah tou lee hai Ghazal “Siya” tou ne
RuNg sheroN men bhar nahin payee

फ़ूल बस इक शाख पर है और हैं कांटे हज़ार.....

ग़ज़ल

ऐ हमारी ज़िन्दगी तूने दिए ग़म बेशुमार
फिर भी हम तुझसे करते जा रहे हैं प्यार

है उदासी ही उदासी आजकल क्यूं चारसू
साथ दे जो आप तो मौसम भी हो खुशगवार

क्या गमो की दास्तां ऐसी भी होती है भला
फ़ूल बस इक शाख पर है और हैं कांटे हज़ार

मैं तड़पती रह गई याद में उसकी मगर
लूट कर वो जा चुका है चैन और सब्रो-क़रार

इस ज़मीं से आस्मां तक कोई भी अपना नहीं
हाँ मुझे अब रास भी आती नहीं आख़िर बहार

ए "सिया"कोई तो हो तेरा भी इस जहां में
जो मुझे आकर सम्हाले और हो जाये निसार

Tuesday 2 August 2011

ख़ुदा का नेक इक बंदा मिलेगा

ज़माना कब कहाँ कैसा  मिलेगा
न तुझसा कोई न मुझसा मिलेगा

बिछड़ के मुझ से तुम को क्या मिलेगा
कहाँ इक दोस्त मुझ जैसा मिलेगा

मेरी आँखों की  जानिब तुम ना देखो
यहाँ मौसम बहोत भीगा  मिलेगा

मेरे कातिल को कोई इतना पूछे
मिटा के मुझको आखिर क्या मिलेगा 

दिलों में प्यार का मौसम रहे तो
खिला हर शाख पर गुंचा मिलेगा 

उसे सब  दिल बातें बोल देंगे
 ख़ुदा का नेक जो इक बंदा मिलेगा 

"सिया " तुम इन दिनों मायूस क्यूं हो 
जिसे देखा बहोत टूटा मिलेगा


इक उम्मीदों का सवेरा आएगा

दूर जा कर दूर कब हो पायेगा
और वोह दिल के करीब आ जायेगा

गुल कभी सूखे नहीं हैं शाख पर
इक उम्मीदों का सवेरा आएगा

एक वीरानी फ़क़त रह जायेगी
बज़्म को जब लूटकर वो जायगा

खुश्बुओ से घर मेरा महकाएगा
इक दिन तो घर वो मेरे आएगा

हर हसीन गुल का मुकद्दर हैं यहीं
कोई उसको तोड़ के ले जायेगा

कोई सूरज से जरा ये  पूछ ले 
मेरे घर से कब अँधेरा जायेगा

उसपे अल्लाह का करम हो जायेगा
जो किसी की उलझने  सुलझाएगा 

कह ना दू उसको 'सिया' मैं दिल की बात
मुझको बातो में बहुत उल्झायेगा

दरमियां इक फासिला चलता रहा

क्या मिला कैसे मिला , चलता रहा
ज़िन्दगी का सिलसिला चलता रहा

हम तो थक कर रुक गए कुछ गाम पर 
हाँ ! मगर वो काफिला चलता रहा

चाहकर भी हम न तेरे  हो सके
दरमियां इक फासिला चलता रहा

हमसफ़र इक राह के हम-तुम हैं क्यूं
मन ही मन शिकवा -गिला चलता रहा

जब वो मुरझाया  फ़ना वो हो गया
फ़ूल जब तक था खिला चलता रहा

Friday 29 July 2011

क्यों उसे रोज़ याद आते हो

ये जो तुम मुझ पे ज़ुल्म ढाते हो
क्यों मेरा सब्र आजमाते हो

 जल ना जाये कहीं तुम्हारे हाथ '
तुम जो औरो के घर जलाते हो

इम्तिहान इश्क करने वालों का
ग़म के मारों को क्यों सताते हो

हम पे पहले भी लोग हस्ते है
क्यूँ तमाशा हमें बनाते हो

अपने आंसू का ग़म नहीं हमको
हम हैं खुश तुम जो मुस्कुराते हो

हारना जीत हैं मोहब्बत में
हार से फिर क्यों खौफ खाते हो

 
जब 'सिया' से नहीं कोई रिश्ता
क्यों उसे रोज़ याद आते हो


Yeh jo tum mujh pe zulm dhhate ho
Kya mira sabr aazmaate हो


JAL NA JAYEN KAHIN TUMHARE HAATH
Tum jo auroN ka ghar jalate ho

ImtihaN ishq kerne walon ka
Gam ke maroN ko kyuun satate ho

Hum pe pahle hi log hanste hain
KyuuN tamasha hamen banate ho

Apne aansoo ka Gham nahin hum ko
Hum hain khush tum jo muskurate ho

Haarna jeet hai moHabbat meN
Haar se phir bhi Khauf khate ho

 Jab “Siya” se nahiN koyee rishta

kyuun usey roz yaad aate ho