उसके हर ज़ुल्म को किस्मत का लिखा कहते हैं
जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं
है इबादत किसी इन्सां से मोहब्बत करना
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत को खता कहते हैं
और होंगे जिन्हें किस्मत से नहीं कोई उमीद
मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं
मांगना भीख गवारा नहीं खुद्दार हूँ मैं
मेरी खुद्दारी को क्यूँ लोग अना कहते हैं
कारवां वालों को इंसान की पहचान नहीं
जिसने भटकाया उसे राहनुमा कहते हैं
देखते ही जिसे ईमान चला जाता है
हाँ उसी को किसी काफ़िर की अदा कहते हैं
उनका अंदाज़े सितम भी है बहुत खूब सिया
ज़हर को ज़हर नहीं कहते दवा कहते हैं
जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं
है इबादत किसी इन्सां से मोहब्बत करना
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत को खता कहते हैं
और होंगे जिन्हें किस्मत से नहीं कोई उमीद
मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं
मांगना भीख गवारा नहीं खुद्दार हूँ मैं
मेरी खुद्दारी को क्यूँ लोग अना कहते हैं
कारवां वालों को इंसान की पहचान नहीं
जिसने भटकाया उसे राहनुमा कहते हैं
देखते ही जिसे ईमान चला जाता है
हाँ उसी को किसी काफ़िर की अदा कहते हैं
उनका अंदाज़े सितम भी है बहुत खूब सिया
ज़हर को ज़हर नहीं कहते दवा कहते हैं
बहुत खूब...........
ReplyDeleteवाह,
पढ़ कर दिल खुश हो गया...
हर शेर काबिले दाद है सिया जी...
है इबादत किसी इन्सां से मोहब्बत करना
ReplyDeleteजाने क्यूँ लोग मोहब्बत को खता कहते हैं
और होंगे जिन्हें किस्मत से नहीं कोई उमीद
मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल......लाजवाब अशआर .....वाह