Thursday 8 December 2011

मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं

उसके हर ज़ुल्म को किस्मत का लिखा कहते हैं 
जाने क्या दौर है क्या लोग हैं क्या कहते हैं 

है इबादत किसी इन्सां से मोहब्बत करना 
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत को खता कहते हैं 

और होंगे जिन्हें किस्मत से नहीं कोई उमीद
मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं

मांगना भीख गवारा नहीं खुद्दार हूँ मैं
मेरी खुद्दारी को क्यूँ लोग अना कहते हैं

कारवां वालों को इंसान की पहचान नहीं
जिसने भटकाया उसे राहनुमा कहते हैं

देखते ही जिसे ईमान चला जाता है
हाँ उसी को किसी काफ़िर की अदा कहते हैं

उनका अंदाज़े सितम भी है बहुत खूब सिया
ज़हर को ज़हर नहीं कहते दवा कहते हैं

2 comments:

  1. बहुत खूब...........
    वाह,
    पढ़ कर दिल खुश हो गया...
    हर शेर काबिले दाद है सिया जी...

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  2. है इबादत किसी इन्सां से मोहब्बत करना
    जाने क्यूँ लोग मोहब्बत को खता कहते हैं

    और होंगे जिन्हें किस्मत से नहीं कोई उमीद
    मुझको उसपर है य़की जिस को खुदा कहते हैं
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल......लाजवाब अशआर .....वाह

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