Sunday 16 October 2011

रोकता रहा ज़मीर वैसे ख़ता से पहले

सोच लीजिए इन 'नाज़-ओ-अदा' से पहले
न जाये मर खामखाँ कोई क़ज़ा से पहले

ख़ताएँ जारी रही तमाम उम्र यूं ही
रोकता रहा ज़मीर वैसे ख़ता से पहले

हो सके तो देखना कभी नजदीक आकर
बरसात होती है कैसे घटा से पहले

यकीन दिलाऊं तुझे कैसे ऐ 'जां-ए-जाना'
थे चैन से हम इस 'दौर-ए-वफ़ा' से पहले

वह फ़क़त रंग ही भर्ती रही अफसानों में
सब पहुंच भी गए मंजिल पे 'सिया' से पहले

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