वफ़ा की कसमे खा कर मुकरने वाले तू खुश रह
झूठ पे झूठ .फरेब दे के बहलाने वाले तू खुश रह
जब तलक चाहा दिल से खेला फिर नज़र बदली
अब हमें देख कर नज़र चुराने वाले तू खुश रह
वो ज़माने भर में उसूलो की जो बाते करते थे
वो सभी रस्मे _उल्फत भुलाने वाले तू खुश रह
आग ही से जले दामन ये जरुरी तो नहीं
मेरी तकदीर को जलाने वाले तू खुश रह
इन लबो पर कभी खुशियों के दीप जलते थे
मुझको यूं जार_ जार रुलाने वाले तो खुश रह
वो नकली फूलो का खुशबू से ताल्लुक कैसा
हैं बनावट का प्यार जताने वाले तू खुश रह
हाले _दिल हमने जुबान से तो उनको कह डाला
दिल में सब अपने राज़ छुपाने वाले तू खुश रह
सिया