Monday 30 May 2011

तू खुश रह

वफ़ा की कसमे खा कर मुकरने वाले तू खुश रह
 झूठ पे झूठ .फरेब दे के बहलाने वाले तू खुश रह

जब तलक चाहा दिल से खेला फिर नज़र बदली 
अब हमें देख कर नज़र चुराने  वाले तू खुश रह

वो ज़माने भर में उसूलो की जो बाते करते थे
वो सभी   रस्मे _उल्फत भुलाने वाले तू खुश रह

 आग ही से जले दामन ये जरुरी तो नहीं 
मेरी तकदीर को जलाने वाले तू खुश रह

इन लबो पर कभी खुशियों के दीप जलते थे
मुझको यूं जार_ जार  रुलाने वाले तो खुश रह

वो नकली फूलो का खुशबू से ताल्लुक कैसा
हैं बनावट का प्यार जताने वाले तू खुश रह 

हाले _दिल हमने जुबान से तो उनको कह डाला
दिल में सब अपने राज़ छुपाने वाले तू खुश रह 

सिया

2 comments:

  1. भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. आग ही से जले दामन ये जरुरी तो नहीं
    मेरी तकदीर को जलाने वाले तू खुश रह

    इन लबो पर कभी खुशियों के दीप जलते थे
    मुझको यूं जार_ जार रुलाने वाले तो खुश रह


    mehsus hua ye sher aapne mere liye hi likha ho
    aabhaar
    charandeep ajmani 9993861181

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