Saturday 28 May 2011

आसमान मुट्ठी में कदमो में ज़माना होता

ख्वाहिशों का भी कभी कोई ठिकाना होता
रोज़ एक नयी आरजू का दिल में आना होता

हर कोई इसी हसरत में जिए जाता हैं
आसमान मुट्ठी में कदमो में ज़माना होता

आंख रखना खुली खायेगा फरेब वक़्त बुरा
संभल के हर किसी से दिल ना लगाना होता

हार ना मान चल के दो कदम ना हो हैरान
मिले मक़ाम कदम खुद ही बढ़ाना होता

दिल में अरमान ऐसे भी कभी आते हैं
काश मशहूर अपना भी फ़साना होता

ना भूल कुर्ब में तेरे कोई उदास भी हैं
 उसके घर जाते उसका हाल तो जाना होता

लोग कुछ देगे तो अहसान जताएगे बहुत
किसी के आगे ना यू खुद  झुकाना होता 

siya

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