ख्वाहिशों का भी कभी कोई ठिकाना होता
रोज़ एक नयी आरजू का दिल में आना होता
हर कोई इसी हसरत में जिए जाता हैं
आसमान मुट्ठी में कदमो में ज़माना होता
आंख रखना खुली खायेगा फरेब वक़्त बुरा
संभल के हर किसी से दिल ना लगाना होता
हार ना मान चल के दो कदम ना हो हैरान
मिले मक़ाम कदम खुद ही बढ़ाना होता
दिल में अरमान ऐसे भी कभी आते हैं
काश मशहूर अपना भी फ़साना होता
ना भूल कुर्ब में तेरे कोई उदास भी हैं
उसके घर जाते उसका हाल तो जाना होता
लोग कुछ देगे तो अहसान जताएगे बहुत
किसी के आगे ना यू खुद झुकाना होता
siya
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