ग़ज़ल......

ज़िन्दगी उलझन बड़ी है इन दिनों
धूप भी कितनी कड़ी है इन दिनों

ये मेरी ग़ज़लों की प्यारी डायरी
मेज़ पर तन्हा पड़ी है इन दिनों

उफ़ वो आगे ही नहीं बढ़ती है अब
वक़्त की कैसी घड़ी है इन दिनों

उड़ रही हैं हसरतें मेरी बहुत
मैंने उनमें पिन जड़ी है इन दिनों

ज़िन्दगी जिसको कहा करते हैं हम
प्रश्न लेकर क्यूं खड़ी है इन दिनों

तू ऐ मेरी रूह, कहना मान ले
ज़िद पे क्यूं आख़िर अड़ी है इन दिनों


सिया,
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