Saturday 29 June 2013

जुस्तज़ू घुट के मर न जाए कहीं



उम्र यूहीं गुज़र न जाए कहीं 
जुस्तज़ू  घुट के मर न जाए कहीं 

यूं कुरेदों न मेरे ज़ख्मो को 
ज़ख्म दिल का उभर न जाए कहीं 

रूह उकता गई है अब ग़म से
दर्द हद् से  गुज़र न जाए कहीं 

किस जगह सर झुका दिया साहेब 
आपका सर उतर न जाए कहीं 

जिंदगी तुझको ढूँढती है अभी 
राह मेरी ठहर न जाए कहीं 

दीदा ए तर में याद है तेरी 
अब के वो भी बिखर न जाए कहीं 

ए सिया ये बला ए सर मेरी 
लौट कर उनके घर न जाए कहीं 

umr yuheen guzar na jaaye kahiN
justzoo ghut mar na jaaye kahi

yoon quredo'n na mere zakhmo'n ko 
zakhm dil ka ubhar na jaaye kahiN

rooh ukta gai hai ab gham se 
dard hadd se guzar na jaaye kahiN

kis jagah sar jhuka dia sahib 
aap ka sar utar na jaaye kahiN 

Zindagi tuj ko dhondati hoon abhi.
raah meri thahar na jaaye kahiN

deeda e tar mein yaad hain teri 
ab ke wo bhi bikhar na jaye kahiN

aye siya ye bala e sar meri 
laut kar unke ghar na jaaye kahiN

Friday 28 June 2013

भूख जिंदा हो तो उपवास नहीं हो सकता

आदमी आस से बे_आस नहीं हो सकता 
भूख जिंदा हो तो उपवास नहीं हो सकता 

जिसको पढने में गुज़र जाए हजारों सदियाँ 
ज़िन्दगी जैसा उपन्यास नहीं हो सकता ..

दफ़न हो जिसमें मुक़द्दर के उजाले सारे 
इतना काला  मेरा इतिहास  नहीं हो सकता 

ऐसी तन्हाई मेरे मन में बसी है की जहाँ 
कोई इंसान मेरे पास नहीं हो सकता 

मुस्कराहट की रिदा ओढ़ ली मैंने ए दोस्त 
मेरे दुःख का तुम्हें आभास नहीं हो सकता 

इतने दुःख सह के भी हंसती है लगातार सिया 
और दुनिया को ये एहसास नहीं हो सकता 

ताल्लुक तोड़ कर इतरा रहे हैं

भरी महफ़िल से उठ कर जा रहे हैं 
ताल्लुक तोड़ कर इतरा रहे हैं 

तबाही के जो मंज़र आ रहे हैं 
हमारे दिल को वो दहला रहे हैं .

कहाँ होता है उनपे कुछ असर भी 
मगर पत्थर से सर टकरा रहे हैं 

सलीक़ा बात करने का न जिनको 
हमें वो लोग अब समझा रहे हैं

अजब किरदार के मालिक है वो भी
बुला कर अपने घर खुद जा रहे हैं

उलझती ही गयी रिश्तों की डोरी
उसे इक उम्र से सुलझा रहे हैं

जहाँ पर लोग मर जाते हैं अक्सर
वहां भी जाके हम जिंदा रहे हैं

यहाँ बुझते दीयों की हैं कतारे
उजालो को उजाले खा रहे हैं अपने

शज़र कटते है छायादार लेकिन
नए पौधे उगाते जा रहे हैं

अली का नाम फिर आया ज़बा पर
गुनाहों को पसीने आ रहे हैं ..

bhari mehfil se uth kar ja rahe hai'n
taaluk tod ke itra rahe hai'n

tabaahi ke jo manzar aa rahe hai'n
hamaare dil ko wo dahla rahe hain

kahan hota hai unpe kuch asar bhi
magar patthar se sar takra rahe hai'n

saleeqa baat karne ka na jinko
hame wo log ab samjha rahe hai'n

ajab qirdaar ke maalik hai wo bhi
bula kar apne ghar khud ja rahe hai'n

uljhti hi gayi rishto'n ki dori
use ik umr se sujha rahe hai'n

jahan par log mar jaate hai aksar
wahan bhi jaake hum zinda rahe hai'n

yahan bhujte diyo ki hai qataare
ujaalo ko ujaale kha rahe hai'n

shazar kat'te hain chhayadaar lekin
naye paudhe ugatae ja rahe hai'n

ali ka naam fir aaya zabaan par
gunaaho'n ko paseene aa rahe hai'n

siya

छेड़ो दर्द भरी सरगम

दिल उदास आँखे है नम 
छेड़ो दर्द भरी सरगम 

तेरे नाम को सुनते ही 
कर लेती हूँ हर्द्यंगम 

अर्थहीन सी रचना है 
क़ाबू से बाहर हैं ग़म 

जीवन रूपी सागर की
राह हुई कितनी दुर्गम

क्या यथार्थ है जीवन का
मन में यहीं पलें है भ्रम

दिन के उजियारे में भी
चंहुदिश फैल गया है तम

धधक रहीं कितनी लाशें
चारों ओर मचा मातम ,

आई घड़ी आपदा की
संज्ञा-शून्य हुए है हम...

Sunday 23 June 2013

rubai

हर दर्द की तफ़सीर नहीं होती है
हर पावँ में जंज़ीर नहीं होती है
ये बात समझने में लगे हैं बरसों 
हर ख़्वाब की ताबीर नहीं होती है 

Har dard ki tafseer nahi'n hoti hai 
Har pavn mein janjeer nahi hoti hai 
ye baat samjhne mein lage hain barso'n 
Har khwaab ki taabeer nahee'n hoti hai

कितनी दुश्वार जिंदगी होगी

हौसलों में अगर कमी होगी 
कितनी दुश्वार जिंदगी होगी

ऐसी दुनिया तलाश करती हूँ
नेक बन्दों से जो बसी होगी

धन्य है माँ वो जिसने बच्चों को
सीख इंसानियत कि दी होगी

जाके ससुराल दुःख सहा उसने
अपने बाबा की लाड़ली होगी

छिन गयी है मेरे लबों से हँसी
बद्दुआ किसकी ये लगी होगी..

इतनी उम्मीद काहे दुनिया से 
ये भला कब तेरी सगी होगी 

आज से होंठ सी लिए मैंने
अब मेरे ग़म में भी कमी होगी

ग़म का मातम मनाऊ भी कितना
ये तो किस्तों में ख़ुद कुशी होगी

मेरी तस्वीर पे जमी कब से
धूल आँचल से पोंछती होगी

बूढी माँ का जो दिल दुखाया था
कैसे जीवन में फिर ख़ुशी होगी

ये सियासत लड़ाके आपसे में
बीज नफ़रत के बो रही होगी

माँ सिया आज बहुत याद आये
आज आँखों में फिर नमी होगी

Sunday 9 June 2013

जो दिल दुखाये वो किस्सा तमाम करना है

सुकूँ से जीने का फिर इंतज़ाम करना है 
जो दिल दुखाये वो किस्सा तमाम करना है

जो नफ़रतों की फ़ज़ाओं में साँस लेते हैं
मोहब्बतों से उन्हें भी गुलाम करना है

अजीब है वो जिसे दोस्ती के परदे में
हमारे ख़्वाब हमी पर हराम करना है

हमारा अज्म हमें सुख दिलाएगा इक रोज़
हमें दुखों को खुद अपना गुलाम करना है

हमें सभी से रवादारियां निभाते हुए
हर एक शख्स को झुक कर सलाम करना है

लगा रहे हैं जो दुनिया में आग नफरत की
हमें तो उनका ही जीना हराम करना है

जो चाहते हैं सिया उनका एहतराम करे
उन्हें हमारा भी कुछ एहतराम करना है

sukoon se jeene ka fir intzaam karna hai
jo dil dukhaye wo qissa tamam karna hai...

jo nafraton ki fazaon mein sans lete hain
mohbbton se unhe bhi gulaam karna hai

ajeeb hai wo jise dosti ke parde mein
hamre khwaab hami par haraam karna hai

ha mara azm hame'n sukh dilayega ik roz
hame dukho'n ko khud apna gulaam karna hai

hame sabhi se rawadariyaan nibhate hue
har ek shkhs ko jhuk kar salaam karna hai

laga rahe hain jo duniya mein aag nafrat ki
hame to unka hi jeena haraam karna hai....

jo chahte hai Siya unka ehtraam kare
unhe hamara bhi kuch ehtraam karna hai

Friday 7 June 2013

मिरी रुसवाईयों के साये हैं

जिनकी उल्फ़त के दिल पे साए हैं 
वो भी अपने नहीं पराये हैं 

राह देखेगे कब तलक़ उनकी 
उनको आना था वो न आये हैं 

मेरी शोहरत से दो क़दम आगे 
 मिरी रुसवाईयों के साये हैं 

तू भी मिल कर नवाज़ दे हमको 
 हम तेरे शहर में जो आए हैं 

तुझको देखा जो आज बरसों बाद 
दो घड़ी हम भी मुस्कुराए  हैं 

उनका अंदाज़ ए गुफ्तगू देखो 
कैसे वो  दिल मेरा जलाए हैं 

छोटी छोटी ज़रा सी बातों पे 
आप इतना क्यूँ मुहँ फुलाए हैं 

जिंदगी चाहती है क्या हमसे 
आज तक ये समझ न पाए है

फिर इरादा किया है मंजिल का 
फिर मेरे पावँ  लडखडाये है 

दिन के अंधों के वास्ते मैंने 
दोपहर में दिए जलाए हैं 

क्यों  भरोसा करे किसी पे हम 
दोस्तों से फरेब खाए है 

हौसले थक गए हमारे भी 
मौत का डर भी अब  सताये हैं 

ए सिया याद आ गई उनकी 
अश्क पलकों पे झिलमिलाये हैं 

jinki ulfat ke dil pe saaye hain 
wo bhi apne nahi paraye hain 

rah dekhege kab talaq unki  
unka aana tha na wo aaye hai

meri shohrat se do qadam aage 
miri ruswaiyoo'n ke saaye hai'n 

tu bhi milkar nawaz de humko 
hum tere shahr mein jo aaye hai'n 

tujhko dekha jo aaj barso'n baad 
do ghadhi hum bhi muskuraye'hai'n 

unka  andaaz-e-guftgoo dekho 
kaise wo dil  mera jalaaye hai'n 

 Choti Choti zara si Bato pe 
aap kyun itna munh fulaaye hai'n 

zindgi chahti hai kya humse 
aaj tak ye samjh na paaye hai'n 

fir irada kiya hai manzil ka 
fir mere pavn ladkhdaye hai'n

din ke andho'n ke waaste maine 
dopahar mein diye jalaaye hai'n

housle thak gaye hamare bhi 
maut ka dar bhi ab sataye hain

aye Siya' yaad aa gayi unki 
ashq palko'n pe jhilmilaaye hai'n 

Monday 3 June 2013

अब तो सूरज को निकलना चाहिए

ख्व़ाब आँखों में वो पलना चाहिए 
जो हक़ीक़त में बदलना चाहिए 

धर्म के जो नाम पर भड़का रहे 
ऐसे लोगो को कुचलना चाहिए 

ऊँचे नीचे का जो जग में फर्क है 
उन रिवाजों को बदलना चाहिए 

भूल करना फ़ितरत ए इंसान है 
मान कर गलती संभलना चाहिए

औरों को उपदेश देने के बजाय
खुद को भी थोड़ा बदलना चाहिए

मोह तृष्णा और हवस के जाल से
हमको तो बच कर निकलना चाहिए

क्रोध से हासिल नहीं होता है कुछ
शांत रख मन यूँ न जलना चाहिए

बात में नरमी रक्खो धीरज रक्खो
विष न जिह्वा से उगलना चाहिए

रात काली जाग कर काटी सिया
अब तो सूरज को निकलना चाहिए

khwaab aankho mein wo palna chahiye
wo haqeeqat mei badalana chahiye

Dharam k jo naam pe bhadka rahe
aise logo ko kuchlana chahiye

oonche neeche ka jo jag mein farq hain
un riwajo'n ko badalna chahiye

bhool karna fitrat e insaan hai
man kar galti samblana chahiye

Auron ko updesh dene ke bajae,
khud ko bhi thodha badalana chahiye

Moh tirshna aur hawas ke jaal se
humko to bachkar nikalana chahiye

krodh se hasail nahi hota hai kuch
shant rakh man yun na jalna chahiye

baat mein narmi rakho dheeraj rakho
vish na Jihva se ugalana chaiye

raat kali jaag kar kaati siya
ab to suraj ko nikalana chahiye

siya

तेरा नाम रटे धड़कन

जाने कब बरसे सावन 
नेह सुधा रस से पावन 

तुझसे है मेरा जीवन 
तेरा नाम रटे धड़कन 

जब तेरे परिचय पाया 
टूट गया भ्रम का दर्पन 

खोयी हूँ तुझमें ऐसे 
तेरा मन है मेरा मन

साज सिंगार तुझी से है
अब मैं क्या देखू दर्पण

मंद पवन के झोंको से
अकुलाता है मेरा मन

व्याकुल्ताये राख हुई
निर्मल है अब अंतर्मन

तुमने पूर्ण किया इसको
खाली था दिल का दर्पन

jane kab barse sawan
neha sudha ras se paawan

tujhse hai mera jeevan
tera naam rate dhadkan

jab tera parichay paya
tut gaya bhrm ka darpan

khoyi hoon tujh mein aise
tera man hai mera man

saaj singaar tujhi se hai
ab main kya dekhu darpan

mand pavan ke jhonko se
akulata hai mera man

vyakultaaye'n raakh hui
nirmal hai ab antarman

tumne purn kiya isko
khali tha man ka darpan

siya

जीतना है दिल मधुर व्यवहार लेकर

स्वप्न नैनों में नए आकार लेकर 
चल दी पी के घर नया संसार लेकर 

माँ की ममता और पिता का प्यार लेकर
ये दुआएँ आपकी उपहार लेकर 

कुछ नए रिश्तों का ये संसार लेकर
जीतना है दिल मधुर व्यवहार लेकर 

माथे बिंदिया मांग में सिंदूर सोहे 
इक सुहागन का अमर सिंगार लेकर

जा रही बाबुल तेरे आँगन की चिड़िया
नयनों से अश्रु की बहती धार लेकर

जब कभी साजन हुए नाराज़ मुझसे
मान जायेगे तनिक मनुहार लेकर