Friday 28 June 2013

छेड़ो दर्द भरी सरगम

दिल उदास आँखे है नम 
छेड़ो दर्द भरी सरगम 

तेरे नाम को सुनते ही 
कर लेती हूँ हर्द्यंगम 

अर्थहीन सी रचना है 
क़ाबू से बाहर हैं ग़म 

जीवन रूपी सागर की
राह हुई कितनी दुर्गम

क्या यथार्थ है जीवन का
मन में यहीं पलें है भ्रम

दिन के उजियारे में भी
चंहुदिश फैल गया है तम

धधक रहीं कितनी लाशें
चारों ओर मचा मातम ,

आई घड़ी आपदा की
संज्ञा-शून्य हुए है हम...

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