Monday 27 June 2011

चोट अपनों से ही हम खाते रहे


दर्द होता रहा छटपटाते रहे
चोट अपनों से अक्सर ही खाते रहे

दीदा-ए-नम छुपाकर ज़माने से हम
सामने सबके हम  मुस्कराते रहे

 दिल में आहे लिए,लब पे झूठी हसी 
गीत खुशियों के हम  गुनगुनाते रहे

भरने को ज़ख्म तो सारे  भर जायेगे
टीस जब भी उठे , हम कराहते रहे

बुत ये बेजान लेकर जमाने में हम
खुद को ज़िंदा है हरदम बताते रहे

रस्मे _दुनिया  का खुद हवाला दिया 
खुद से नज़रे हम अपनी चुराते रहे

दागे _ए _सीन _ए _दर्दे  ना पूछे कोई
जो जमाने से हरदम छुपाते रहे

बोझ दिल में छुपाये हुए हम सिया
उम्र भर दर्द-ओ-गम को  उठाते रहे

Saturday 25 June 2011

आपकी आँखों में कितना प्यार है.


क्यूं ये दुनिया दरमियां दीवार है.
आपकी आँखों में कितना प्यार है.

कागज़ -ए -दिल पे लिखे थे लफ्ज़ कुछ
  पढ़ तो लेना  इश्क का इज़हार है

यूं तो ख्वाबो में सफ़र करते हो तुम
हाँ हकीकत में भी तो दरकार है

कब से जागी  पलके हैं बोझल मेरी
अब तो पल भर  नींद भी दुश्वार है

फैसला  अपना ले या, ठुकराये आप
आपके कदमो में अब मेरा संसार है

जाने कब होगा दीदारे _यार का
 दिल 'सिया' बरसो से  बेकरार है

सिया

Thursday 23 June 2011

क्यों यहाँ कोई बसर करे

क्या करे ऐसे आशियाने का, क्यों यहाँ कोई बसर करे
जहाँ साँस ले सके न हम , जहाँ प्यार भी ना असर करे

यहां नश्तरों का ये हुजूम है, जो सीने के पार हो गया
अब सहा जाता नहीं ग़म वो कहां पे जाये, क्या घर करे

रिश्ते यहाँ पे कुछ भी नहीं, तन्हाइयों का है इक सफ़र
कौन तन्हा तवील सा ये ज़िन्दगी का सफ़र करे

उफ़ कौन समझा है अब यहां जज़बात मेरे प्यार के
ऐ सिया शाम खतम हो ,यहां रह के कौन सहर करे

siya..

गुंचा -ए_ दिल जो खिलाओ तो रास्ता निकले


वफ़ा की शम्मा जलाओ तो रास्ता निकले
यकीन चाहत का दिलाओ तो रास्ता निकले

तू चाँद हैं,जो अँधेरी रात को रोशन कर दे
मेरे दिल में उतर आओ तो रास्ता निकले

गीत जो मैं लिखूं वो हो तुम्हारे लिए
तुम उसी गीत को गाओ तो रास्ता निकले

मुझको महसूस तो होती है तुम्हारी धड़कन
हया के परदे गिराओ तो रास्ता निकले

हाले_ए _दिल अपना जुबा पे क्यों नहीं लाते
ये तकल्लुफ जो मिटाओ तो रास्ता निकले

मैं तेरे हिज्र में बरसों से मुन्तज़िर आख़िर
गुंचा -ए_ दिल जो खिलाओ तो रास्ता निकले

सिया

हमने काँटों पे चलने का सफ़र सीखा है


हमने काँटों पे चलने का सफ़र सीखा है
आग पानी में लगाने का हुनर सीखा है

तुम हवा के गरम झोंके से भी घबराते हो
हमने मर मर के ,जीने का हुनर सीखा है

कोई उम्मीद लगाना नहीं किसी से कभी
 लब पे शिकवा ना लाने का हुनर सीखा है

चोट खाकर भी अब एहसासे_ग़म नहीं होता
हस के अश्को को छुपाने का हुनर सीखा है

अपनी ही धुन में , अपने आप ही में गुम है
हमने भी बच के  गुजरने का हुनर सीखा है

जहाँ की रौनके मुझको  ना रास आती है
हमने तन्हाई  में  रहने का हुनर सीखा है

सिया

Thursday 16 June 2011

एक रोशन आदमी क्यूं आजकल बेनूर है

उससे रिश्ता दिल का है,जो पास नहीं कुछ दूर हैं
इक कसक सीने में है ये दिल भी क्यूं मजबूर है

क्या करें हम क्या करें कुछ सूझता ही अब नहीं
देखिये उसको भी आख़िर वो बहोत मगर मगरूर है

वो तो पत्थर दिल ही होगा जिसके मैं नज़दीक थी
आईना इस दिल का मेरे देख लो क्यूं चूर है

मैकदे की राह से आया था आख़िर दर मेरे
देखिये वो शख्स आख़िर किस क़दर मसरूर है

है यही अफ़सोस मुझको क्या बताऊँ मैं सिया
एक रोशन आदमी क्यूं आजकल बेनूर है

siya...

जरा सी ठेस जो लगी तो चटक जायेगे

अब जो बिखरे तो फिर से ना सिमट पायेगे
हम ज़मीन के सभी रिश्तो से कट जायेगे

तू मुझसे आंख चुराए ना ये सह पायेगे
तू खुश रहे. हम तेरी राह से ही हट जायेगे

हमने पाई है नजाकत मिजाज़ _आइना सी
जरा सी ठेस जो लगी तो चटक जायेगे

हम इस गुमान में थे तू हैं संग हर सफ़र में
ये ना जानते थे तनहा राहो में भटक जायेगे

वक़्त कितना लगा था पास तेरे आने में
गुज़र जाएगी ये उम्र, तुझे भूल नहीं पायेगे

वफ़ा का वास्ता देकर मना लेंगे तो अच्छा हो
अना आई जो आड़े 'सिया ' जुदा फिर पायेगे

सिया

Monday 13 June 2011

यूं अनजान बने बैठे है

चाहत का तेरी दिल में अरमान लिए बैठे है
जाने क्यों वो हमसे  यूं अनजान बने बैठे है

सच्ची जो हो मोहब्बत वो खुदा की है इबादत
जिस दिल में जज्बा इश्क है वो इंसान बने बैठे है

यूं तो मिले वो जब भी मिलता हैं मुस्कुरा के
इक ये ही दिल पे उनका हम एहसान लिए बैठे है

हम जानते थे हम पर गमें _इश्क होगा भारी
शोरे -कयामत सा दिल में तूफ़ान लिए बैठे है

जो लुत्फ़ बेखुदी में था वो होश में कहाँ हैं
नाकाम दिल की बस्ती वीरान लिए बैठे है

सिया

Friday 10 June 2011

तन्हाईयो के साये


बेचैनियाँ ये दिल की  कैसे तुम्हे  बताएं
लफ्जों में दर्द अपना हम कर बयां न पाए



हालत हैं दीवानों  सी हैरान हूँ मैं  खुद पे
किस कशमकश से गुज़री कैसे ये हम बताये 



लाये कहाँ से इतना अंदाज़ -ए -हिम्मते हम
चेहरा बता रहा  हैं  कुछ तो गवां के आये


होकर  के बेखबर हम हँसते तो  कभी रोते
रहते हैं खुद में खोये ,खुद को समझ ना पाए


ये किस अधूरेपन की तकलीफ हो रही है
जो भीड़ में भी रहते तन्हाईयो के साये


सिया 

Thursday 9 June 2011

उफ़ ये कैसी तिश्नगी

ये कैसा प्यार है, उफ़ ये कैसी तिश्नगी है, बताओ मुझे
खुश रहे वो हमपे कायम जब तलक हसीं जमाल रहा

अब तो कुछ पल सुकून के अता भी कर मुझको
हाय गर्दिश में बहोत ही मेरा वो पिछला साल रहा

वर्ना तेरी अदालत में कोई गुनाहगार नहीं बचता
क्यूं वही शख्स गुनाहों से हमेशा ही बस बहाल रहा

तुमने मुझको पराया मान लिया है ये भी क़िस्मत
मेरे ज़ेहन में हमेशा , आपका ही बस ख़याल रहा

सिया

Wednesday 8 June 2011

सब्र मेरा भी कुछ कमाल रहा



अब ना शिकवा .ना गिला .ना कोई अब मलाल रहा
जुल्म  तेरे भी बेहिसाब रहे ,सब्र मेरा भी कुछ कमाल रहा

 मुझको हसना भी रोना भी ,मरना , और जीना भी यहीं
 तुझको रुसवा भला मैं कैसे करू ,मुझे तो आपका ख्याल रहा

मेरी बर्बादी का बाइस, तेरा ही अक्स छुपा है  दिल में
तुझे मुझसे शिकायते ही रही, हर घडी इक नया सवाल रहा

होगा हासिल भी क्या इस हाल पे, इलज़ाम जो देते तुझको
  किसी ने पूछा ना ग़म जाना ,  क्यों ये मेरा हाल रहा

सि
या

Tuesday 7 June 2011

हर सफ़र कट जायेगा

ज़िन्दगी का हर सफ़र कट जायेगा
आदमी का क्या है वो बंट जायेगा

सच के दर्शन आपको हो जायेंगे
ये धुंधलका बस अभी छंट जायेगा

फिर कहानी एक लिखेंगे ज़रूर 
नाम उसका जब हमें रट जायेगा

कम से कम कुछ दर्द तो मिट जायेंगे
हाँ वो इक पन्ना ही तो फट जायेगा

वो तो है आशिक़ किशन का रूप है 
या तो दरिया या तो पनघट जायेगा.

siya...

Sunday 5 June 2011

चंद शेर आपकी खिदमत मे

नेक सोहबत मिले तो इंसान की सोच निखर जाती हैं
गुलो को छू के जो गुज़रे वो हवाये भी महक जाती हैं

सिया ....



किस तरह दर्द अपने दिल में छुपाया हमने
वो किसी और की चाहत ,ये बताया उसने
सिया...

तू मिलकर जब भी मुझसे जुदा हुआ
ये सांसे वही थम गयी ऐसा गुमान हुआ

सिया....


क्या मिला मुझको आज इश्क मे चाहत का सिला
टूट कर चाहने की पाई सजा अपना दिल टूटा मिला

सिया 


यूं तो बाते तुम कमाल किया करते हो
वफ़ा की बात पे क्यों टाल दिया करते हो

सिया..



ये तड़प ,आह ,दर्द,ग़म आँख से बहता पानी
आपकी दी हुई हैं सौगाते .आपकी ही हैं मेहरबानी


सिया...


मैं  हमेशा  ही  सबसे  हसके  मिला  करती  हूँ .
ना  जाने  लोग  क्यों  कहते  हैं कुछ तो ग़म हैं तुझे

सिया .....


जिन्हें हसरत हैं दौलत की वो दिल भी तोलते हैं
वो इंसान हैं कहाँ उनको तो पत्थर बोलते हैं

सिया ...


क्यों इतना बेखबर होकर मेरे बाजू से गुज़रा हैं
तेरी इक नज़र खातिर ये दिल बरसो से तरसा है

siya..


ज़मीन सूखी पड़ी है कब से अभी पानी ना बरसा हैं
तू किस बारिश में भीगा हैं ज़माने भर में चर्चा हैं

siya...



कभी तो मिल तू जिंदगी अकेले में मुझे
अपने सारे  हिसाब तुझसे हम चुकता करेगे
जिंदगी जो मिली तो हस के ये बोली मुझसे
जिसके जैसे करम वैसे ही वो भुगता करेगे

सिया...



आँखों में कुछ ख्वाब अधूरे कुछ देर मुझे तुम सोने दो
अभी दिल की ज़मीन नम हैं कुछ अरमानो को बोने दो
सिया ...

देख कर मुझको बेसहारा फलक ने कर दिया साया मुझपे

सिया ...


तू पत्थर के जिगर वाला मेरे दिल में मोहब्बत हैं

ये पत्थर भी पिघल जाये जो दिल में सच्ची शिद्दत हैं


सिया...



जिसको माना अपना हैं वो ही ज़ख़्म नया इक दे के गया

लब तो हसे पर ,दर्द छुपा ना आँखों से जो मुझे  तू दे के गया


सिया.. 



 ताज़ा है ज़ख्म कुरेदो ना कोई बात करो
पुराने ज़ख्मों को तो जरा भर जाने दो
अभी इन आँखों में चुभा करती हैं किरचे
ख्वाब टूटे हुए को फिर से ना सजाने दो

सिया.. 



कच्चे बखिये से उधड़ते जाते हैं झूठे रिश्ते 
दिल से फिर भी ना निकल पाए जो टूटे रिश्ते 
दर्द का इक खजाना मिला हैं क़र्ज़ मुझे 
जिंदगी भर है चुकानी मुझे उसकी किश्ते

सिया..



अभी  गुम है  परस्ती _ऐश में फिरे उड़ता हवाओ में
मिली जब ठोकरे पछताए,  मिला क्या इन गुनाहों में
सिया.. 




वो मुझसे देर तक खफा ना रह सकता
मैं जानती हूँ वो मुझ से जुदा ना रह सकता
सिया


ये मुफलिसी भी क्या रंग दिखा जाती है
खून के रिश्तो को भी ये मिटा जाती है
सिया..




इतना बच कर भी ना गुजरो हमसे
की हम भी आंख चुराए तुमसे
सिया ..


हैं चार दिन का जीना क्यों जल रहा नफरत में
क्यों ना जलाये दिल में चिंगारी मोहब्बत की
सिया ...

हैं चार दिन का जीना क्यों जल रहा नफरत में
क्यों ना जलाये दिल में चिंगारी मोहब्बत की
सिया ...


कभी कामयाबी की तलाश में भटकती है जिंदगी
और कभी कामयाबी के नशे में बहकती है जिंदगी

सिया


गुनाहों से करो तौबा की खुदा की  बंदगी कर लो
उसीके  के नूर से पुरनूर अपनी जिंदगी कर लो

सिया

अब ना शिकवा .ना गिला .ना कोई अब  मलाल रहा
सितम तेरे भी बेहिसाब रहे ,सब्र मेरा भी कुछ कमाल रहा 



सिया





 कब से यूं दरबदर भटका किया पाया
क्या दीवाने ने
राह_ऐ -फना  में   साथ दिया है कभी ज़माने ने

सिया 






कुछ ऐसा काम कर जा की ख़ुशी से मर सके 
जिंदगी के  सफ़र को बेह्तर मुकम्मल कर सके
फ़ना हो जायेगा इक दिन किसी के काम तो आजा
गैर का दर्द भी महसूस हो कोई बन्दा गुनाह ना कर सके
सिया

मैं उम्र भर यूं ही उडती रही खयालो में, आसमानों में
होश आया जब पाव के नीचे से ज़मीन खिसक गयी

सिया

उसके लफ्जों से बरसते थे फूल ,ये ना जाना दिल में इतना ज़हर इतना रखते है

चलो कुछ जिंदगी का ये तजुर्बा तो मिला, जाना की लोग बनावट का हुनर रखते है

सिया


गमो के बदली छटी और ख़ुशी की छायी घटा
हसी जो आई लबो पे तो भीगा संग काजल

सिया


चल तो दिए निकल के बस दो कदम चले
फिर याद आया ये रास्ता मंजिल नहीं मेरी

सिया


अब तो मिलते हुए लोगो से घबराते हैं हम

फिर से पूछेगे खोद खोद के दिल में क्या है

सिया



कुछ ऐसे नकली चेहरे ,रहे हरदम चेहरे पे नकाब
हर बात फरेब हो उनकी हर सवाल पे झूठा जवाब


सिया



हौसले बनाये रख  हिम्मत रहे जवान
हालात से डरे ना जो वो ही सही  इंसान 


सिया 


रख खुद पे यकीन और मंजिल पर नज़र रख
कामयाबी के यहीं मरहले रख आगे कदम रख
 सिया



दर्द होता रहा छटपटाते रहे अपनों से हम सदा चोट खाते रहे
दीदा _ए _नम छुपाकर ज़माने से, सामने सबके मुस्कराते रहे

सिया


Saturday 4 June 2011

वक़्त कम सा है

क्यों इतना बेखबर होकर मेरे बाजू से गुजरा है
तुम्हारी इक नज़र खातिर ये दिल बरसो से तरसा है

बरसता हैं जो कतरा नहीं पानी की हैं बूंदे हैं
ये आंसू हैं जो मेरी इन्ही आँखों से बरसा है

नब्ज़ जाती है अब छु टी तेरे दीदारे _ हसरत में
आखरी शब् है जुदाई का यहीं दिल में गम सा है

आ तुझको देख लू जी भर फिर मुझको करार आये
की तुझपे जान लुटा दे जो न कोई ऐसा हम सा है

आखरी दम ये मेरा पनाहों में तेरी निकले
सनम अब आ भी जाओ पास मेरे वक़्त कम सा है

siya...

Thursday 2 June 2011

वो जो चेहरे कई लगाते है

लोग पल भर में बदल जाते है
जैसे मौसम हो आते जाते है

फूल लहजे से जिनके झरते है
उनके तेवर भी बदल जाते है

वादे करते है कसमे खाते है
फिर वो मजबूरियां जताते है

काश हम भी उन्हें समझ पाते
वो जो चेहरे कई लगाते है

कभी मिलते हैं गरम जोशी से
और कभी आंख यूं चुराते है

हमसफ़र बन के साथ चलते है
फिर वो राहो में छोड जाते है

जब चला जिक्र बेवफाई का
आप क्यों अपना मुहं छुपाते है
सिया