Monday 13 June 2011

यूं अनजान बने बैठे है

चाहत का तेरी दिल में अरमान लिए बैठे है
जाने क्यों वो हमसे  यूं अनजान बने बैठे है

सच्ची जो हो मोहब्बत वो खुदा की है इबादत
जिस दिल में जज्बा इश्क है वो इंसान बने बैठे है

यूं तो मिले वो जब भी मिलता हैं मुस्कुरा के
इक ये ही दिल पे उनका हम एहसान लिए बैठे है

हम जानते थे हम पर गमें _इश्क होगा भारी
शोरे -कयामत सा दिल में तूफ़ान लिए बैठे है

जो लुत्फ़ बेखुदी में था वो होश में कहाँ हैं
नाकाम दिल की बस्ती वीरान लिए बैठे है

सिया

No comments:

Post a Comment