Monday 21 November 2011

किस ज़बां से उसको अनजाना कहूं


पहले अपने दिल को दीवाना कहूं 
फिर कहीं चाहत का अफसाना कहूं 


बारहा कहता है मुझ से मेरा दिल 
मैं तेरी आँखों को मयखाना कहूं 


कब से मेरे दिल में रहता है वोह शख्स 
किस ज़बां से उसको अनजाना कहूं 


मुझको  सच  कहने  की  आदत  है बहुत   
कातिलो  को  कैसे  दीवाना  कहू ..


कहता है दिल कम से कम इक बार तो 
शमा उस को खुद को परवाना कहूं 


जाने कब से  खुश्क है आंखे तेरी 
किस तरह  मैं  इसको मयखाना कहू  


ज़ेहल के  जो  लोग  पैरोकार हैं चाहते  है 
चाहते हैं मैं  उन्हें  दाना  कहू 


उस की मूरत बस गयी दिल में सिया 
फिर ना क्यूं इस दिल को बुतखाना कहूं

Friday 18 November 2011

नए ज़माने का बच्चा कमाल करता है



जरा सी बात पे इतने वबाल करता है 
वो इस कदर मेरा जीना मुहाल करता हैं

हर एक बात पे सौ सौ सवाल करता है 
नए ज़माने का बच्चा कमाल करता है 

वो बाज़ आएगा ए दिल न अपनी आदत से  
तू किस उम्मीद पे शौक़ -ए -विसाल करता है 

पशेमां खुद भी  है वो अपनी बेवफाई पे 
वो जुल्म करता है और फिर मलाल करता है  
  
पसीना बनके जो उभरा है मेरे माथे पर 
यही लहू मेरी रोजी हलाल करता है

हमेशा उसने नवाज़ा हैं दर्द _ओ_ ग़म से मुझे 
वो मेरे शौक का कितना खयाल करता हैं

जो थाम लेता है खुद बढ़के हाथ मुफलिस के 
खजाने उसके खुदा मालामाल करता है

सिया मैं क्या कहू अब और उसके बारे में
वो नेकियां भी बड़ी बेमिसाल करता है


Friday 11 November 2011

अब तो बस मसरूफियत के ही बहाने रह गए

आपके जो साथ गुज़रे, वो ज़माने रह गए
चंद यादें रह गयीं और कुछ फ़साने रह गए

आपको अब हमसे मिलने की कोई चाहत नहीं
अब तो बस मसरूफियत के ही बहाने रह गए

आप हैं हरजाई , कोई आज है तो कल कोई
आपके तो हम दीवाने थे , दीवाने रह गए

आग में चाहत की जलने से तो मिलता है करार
जो किये थे मुझसे वादे वो निभाने रह गए

लुट ली दुनिया ने तेरे प्यार की दौलत मगर
अब तेरी यादों के बस दिल में खजाने रह गए

ए "सिया " उम्मीद क्या रखे ज़माने से कोई
हमको देने के लिए दुनिया पे ताने रह गए 

Thursday 10 November 2011

एक बिरहन को मगर तडपा गया


प्यार  का मौसम  जहाँ  को भा गया 
कुछ दिलों  को और  भी  तडपा गया  
 
आई  है  कुछ  देर  से  अबके  बहार 
फूल  कब  का शाख  पर मुरझा  गया 
 
कारखानों  से  जो  निकला  था धुवां 
शहर  में  बीमारियाँ  फैला  गया 
 
एक नेता  था  वोह और  करता भी  क्या 
मसले  वो सुलझे हुवे  उलझा  गया 
 
तब  वो  समझा  लूटना  इक  जुर्म  है 
सेठ  के  हाथों  से  जब  गल्ला  गया 
 
क्या  हुआ  ऐसा  किसी ने  क्या  कहा 
उनके माथे  पे पसीना  आ  गया 
 
था  हसीं  मौसम  बहारों   का  :सिया :
एक  बिरहन  को  मगर  तडपा   गया 
 

खुदा के लिए अब ना मुझको सताए


खबर तेरी लायी है महकी हवाए 
ये शादाब मंज़र ये बहकी फिजाए 

ना रह पाए दिल पे मेरा कुछ भी काबू  
बना दे दीवाना ये काफिर अदाए

चले आओ कितना हसी है ये मौसम 
ये रिम झिम सी बरसे है काली घटाए 

तुम्ही मेरी हसरत हो जाने तमन्ना 
खुदा के लिए अब ना मुझको सताए 

मैं देखू की बदली में कैसा हैं चंदा 
जरा रुख से अपने ये जुल्फे हटाये 

हो उसके लबो पे 'सिया 'मेरी बाते 
मैं कह दू ग़ज़ल और वो गुनगुनाये 

अब तो हो जाए ख़ुदारा मेहरबानी आपकी

कब तलक आखिर रहेगी बे -ज़ुबानी आपकी ,
अब तो हो जाए ख़ुदारा मेहरबानी आपकी

आपका तर्ज़ ए सुखन हम को न रास आया कभी
दिल जला देती है अक्सर हक बयानी आपकी

आपका एहसास ही तो जिस्म-ओ-जां और रूह है
क्या किसी ने की है ऐसी क़द्रदानी आपकी

इसलिए हरदम ही रहती हूँ नफासत के करीब,
जिंदगी को भी समझती हूँ निशानी आपकी .

ज़ख़्म जैसे बन गए हो आपबीती ए सिया
कर ही देते हैं बयां ये हर कहानी आपकी

जो कहनी ना हो वोह बात कह जाती हूँ मैं

रोज़  शब्  होते ही उसके घर को महकाती हूँ  मैं
बन के खुशबू उसके आँगन में बिखर जाती हूँ मैं

लोग कहते हैं भुलाना चाहता है वोह मुझे
इसका मतलब है के उसको अब भी याद आती हूँ मैं

ए मेरे महबूब आता है तो  फिर  जाया ना कर

 तुझ से इक पल भी बिछड़ जाऊ तो घबराती हूँ मैं

मेरी आँखें बोलती रहती हैं सच  मैं क्या करू

 उस से जो कहनी ना हो वोह बात कह जाती हूँ मैं

क्या  बताऊँ ज़िन्दगी  ने  क्या  दिया मुझको  सिया
रोज़ औरों के  गुनाहों की सजा पाती हूँ  मैं 


Sunday 6 November 2011

सजदे में तेरे जिंदगी मेरी तमाम हो


ले दे के इस हयात में बस एक काम हो
मेरी जुबां से ज़िक्र तेरा सुब्ह ओ शाम हो

मैं उम्र भर तेरी ही इबादत में बस रहू 
सजदे में तेरे जिंदगी मेरी तमाम हो 

खिलते रहे चमन में मोहब्बत के फूल ही 
दुनिया में नफरतों का न कोई निजाम हो 

रुसवा जो हो गए हैं बहुत कमनसीब हैं 
ये कौन चाहता हैं जहाँ में न नाम हो 

हम तो तुम्हारे वास्ते करते हैं इक दुआ
सबके लबों पे आपका उम्दा कलाम हो 

नेकी की राह से कोई भटके न अब सिया 
अच्छाइयों का रास्ता इतना तो आम हो

Wednesday 2 November 2011

या रब बुरा किसी का न सोचूँ मैं ख्वाब में

तुम ने मुझे लिखा था जो ख़त के जवाब में
महफूज़ कर लिया है वह दिल की किताब में

दुख दर्द में हमेशा जो आता है सब के काम
दे दीजे उस को लफ्ज़ फ़रिश्ता ख़िताब में

दिल को किसी के मुझ से न तकलीफ़ हो कभी
या रब बुरा किसी का न सोचूँ मैं ख्वाब में

तेरी नज़र ने कर दिया मदहोश दिल मेरा
ऐसा नशा कहाँ है किसी भी शराब में

मिलके भी उस से हम रहे मेहरुमे दीद_ए_यार
उस ने छुपा के रक्खा था चेहरा नकाब में

दिन में भी मेरे घर में अँधेरा रहा :सिया:
वैसे तो रौशनी थी बहुत आफ़ताब में