पहले अपने दिल को दीवाना कहूं
फिर कहीं चाहत का अफसाना कहूं
बारहा कहता है मुझ से मेरा दिल
मैं तेरी आँखों को मयखाना कहूं
कब से मेरे दिल में रहता है वोह शख्स
किस ज़बां से उसको अनजाना कहूं
मुझको सच कहने की आदत है बहुत
कातिलो को कैसे दीवाना कहू ..
कहता है दिल कम से कम इक बार तो
शमा उस को खुद को परवाना कहूं
जाने कब से खुश्क है आंखे तेरी
किस तरह मैं इसको मयखाना कहू
ज़ेहल के जो लोग पैरोकार हैं चाहते है
चाहते हैं मैं उन्हें दाना कहू
उस की मूरत बस गयी दिल में सिया
फिर ना क्यूं इस दिल को बुतखाना कहूं