Wednesday 31 August 2011
जीवन-बगिया के माली
जीवन-बगिया के माली तुम रूठ कंहा को चले गए |
बचपन बीता प्यार बिना ,तुम कौन जहाँ को चले गएमाँ की ममता मिली ना बाबुल का दुलार ही पायादर्द यहीं रह रह के दिल में उभर उभर के आया
दुःख सहने को दुनिया के तुम छोड़ ओ बाबुल चले गए
कोई अपने बच्चो को देता दुलार, देख हम तरसा कियेछुपा लिए आंसू वो हमने ,जो छुप छुप आंख से बहा कियेसर पर अपने कड़ी धूप हम बिन साए के फिरा कियेकौन यहाँ पर दर्द हमारा माँ बाबा सा समझा किये
स्याह अँधेरा दिल में मेरे,तुम दीप जलाने कहा गए
ओ माँ तेरे आँचल की ठंडी छावं को ढूढे ये मन मेरा
रात अमावस सी लगती हैं बिन तेरे सूना सा दिन
मुरझाये फूलो से हैं हम,बिन माली उजड़ा सा चमन
आज तेरी बेटी तनहा है, तेरी दुआ बिना खाली दामन
कर के सूना घर आंगन तुम छोड़ के तनहा चले गए
आह लबो से निकले क्यों रूठ गयी हमसे तकदीर
दिल में छुपाये रहते हैं.कौन सुनेगा मन अपने पीरनूर छिना चेहरे से , हरदम रहते हैआँखों में नीरयादे बाकि रह गयी, धुधली पड गयी हैं तस्वीर
बिन तेरा रीता जीवन तुम कौन देस को चले गए
Monday 29 August 2011
दोस्तों ने बहुत सताया है !
इन तुजुर्बो ने ये सिखाया है
ठोकरे खा के इल्म आया है
क्या हुआ आज कुछ तो बतलाओ
क्यों ये आंसू पलक तक आया है !
दुश्मनों ने तो कुछ लिहाज़ किया
दोस्तों ने बहुत सताया है !
आसमां, ज़िंदगी, जहाँ, हालात
हम को हर एक ने आज़माया है !
अब रुकेंगे तो सिर्फ़ मंजिल पर
सोचकर यह क़दम उठाया है !
ऐ "सिया" हम हैं उस मक़ाम पर आज
धूप है सर पे और न साया है !
मेरा दम निकल जाये
मेरे दिल को कभी इक पल न भूले से क़रार आये
सितम इतने करो मुझ पर के मेरा दम निकल जाये
ज़बां पर इस लिए पहरा लबों पर इस लिए ताले
जो सच्ची बात है ऐसा न हो मुंह से निकल जाए
मैं तुम से बाख़बर और तुम रहे हो बेख़बर मुझ से
मेरी क़िस्मत में ही कब हैं तुम्हारे प्यार के साये
बसा है जब से इक इन्सां का चेहरा मेरी आँखों में
वह मुझ से दूर हो फिर भी मुझे हर पल नज़र आये
मेरा मायूस दिल यूं तो "सिया" ख़ामोश रहता है
धड़कता है मगर उस पल किसी की याद जब आये
Thursday 25 August 2011
ये कैसा प्यार है तेरा समझ में कुछ नहीं आये
सितम इतने किए तूने कि मेरा दम निकल जाये
ये कैसा प्यार है तेरा समझ में कुछ नहीं आये
ज़ुबान पर आपने ताले लगाये इसक़दर मेरी
जरा से गुफ्तगू को भी हमारा दिल तरस जाये
सनम तुझको मेरी परवाह आख़िर क्यूं नहीं होती
तुम्हारे हर कदम पर हैं मेरी चाहत के जब साये
बस एक चेहरा तुम्हारा बसा है मेरी आँखों में
बिछड़ के आपसे हमको नज़र कुछ भी नहीं आए
वो जब भी याद आये, सिया का दिल धड़क जाये
तुम्हारे साथ ये लम्हे बता दे क्यों नहीं पाए
इक दिन याद आएगी तुम्हे कीमत हमारी
दिलों से खेलना ठहरी जो आदत तुम्हारी
यकीन करना सभी पर ये फितरत हमारी
खिलौना जान कर दिल को ठोकर मारते है
लगे तुमको भी ठोकर इक दिन हसरत हमारी
खुदा के घर में है इन्साफ इतना याद कर लो
की इक दिन याद आएगी तुम्हे कीमत हमारी
ना पाओगे दुबारा इतना तुमने दिल दुखाया
मुझे भी दूर ले जाएगी ये नफरत तुम्हारी
हमें रुसवाई का डर है तुम्हे ना फर्क कोई
सिया के संग जाएगी ये हकीकत तुम्हारी
Wednesday 17 August 2011
शाम को भी जो घर नहीं आई
उफ़ मैं इतना भी कर नहीं पाई
प्यार में तेरे मर नहीं पाई
सबका ग़म बांटती रही अब तक
अपने ग़म से उबर नहीं पाई
जिंदगी तुझसे हूँ मैं शर्मिंदा
रंग जो तुझ में भर नहीं पाई
मैंने इक इक शय संवारी हैं
सिर्फ किस्मत संवर नहीं पाई
मैंने उल्फत निभाई हैं तुझसे
प्यार में तेरे मर नहीं पाई
सबका ग़म बांटती रही अब तक
अपने ग़म से उबर नहीं पाई
जिंदगी तुझसे हूँ मैं शर्मिंदा
रंग जो तुझ में भर नहीं पाई
मैंने इक इक शय संवारी हैं
सिर्फ किस्मत संवर नहीं पाई
मैंने उल्फत निभाई हैं तुझसे
तुमसे लेकिन वफ़ा नहीं पाई
कितनी मज़बूत है ये आस मेरी
टूट कर भी बिखर नहीं पाई
मैं हूँ इक ऐसी सुबह की भूली
शाम को भी जो घर नहीं आई
कह तो ली हैं ग़ज़ल सिया तुने
रंग शेरो में भर नहीं पाई
Uff main itna bhi ker nahiN payee
Pyar men tere mar nahiN payee
Sub ka gam banTtee magar ab tak
Apne Gham se ubhar nahin payee
Zindagee tujh se hooN main sharmindah
RuNg jo tujh meN bhar nahiN payee
maine ulfat nibhayi hain tujhse
tumse lekin wafa nahi payi
MaiN ne ek ek shay saNwari hai
Sirf qismat sanwar nahiN payee
Kitni mazboot hai yeh meri aas
TooT ker bhi bikhar nahiN payee
Main hoon ik aise subHa ki bhoolee
Sham ko bhi jog har nahiN aayee
Kah tou lee hai Ghazal “Siya” tou ne
RuNg sheroN men bhar nahin payee
फ़ूल बस इक शाख पर है और हैं कांटे हज़ार.....
ग़ज़ल
ऐ हमारी ज़िन्दगी तूने दिए ग़म बेशुमार
फिर भी हम तुझसे करते जा रहे हैं प्यार
है उदासी ही उदासी आजकल क्यूं चारसू
साथ दे जो आप तो मौसम भी हो खुशगवार
क्या गमो की दास्तां ऐसी भी होती है भला
फ़ूल बस इक शाख पर है और हैं कांटे हज़ार
मैं तड़पती रह गई याद में उसकी मगर
लूट कर वो जा चुका है चैन और सब्रो-क़रार
इस ज़मीं से आस्मां तक कोई भी अपना नहीं
हाँ मुझे अब रास भी आती नहीं आख़िर बहार
ए "सिया"कोई तो हो तेरा भी इस जहां में
जो मुझे आकर सम्हाले और हो जाये निसार
ऐ हमारी ज़िन्दगी तूने दिए ग़म बेशुमार
फिर भी हम तुझसे करते जा रहे हैं प्यार
है उदासी ही उदासी आजकल क्यूं चारसू
साथ दे जो आप तो मौसम भी हो खुशगवार
क्या गमो की दास्तां ऐसी भी होती है भला
फ़ूल बस इक शाख पर है और हैं कांटे हज़ार
मैं तड़पती रह गई याद में उसकी मगर
लूट कर वो जा चुका है चैन और सब्रो-क़रार
इस ज़मीं से आस्मां तक कोई भी अपना नहीं
हाँ मुझे अब रास भी आती नहीं आख़िर बहार
ए "सिया"कोई तो हो तेरा भी इस जहां में
जो मुझे आकर सम्हाले और हो जाये निसार
Tuesday 2 August 2011
ख़ुदा का नेक इक बंदा मिलेगा
ज़माना कब कहाँ कैसा मिलेगा
न तुझसा कोई न मुझसा मिलेगा
बिछड़ के मुझ से तुम को क्या मिलेगा
कहाँ इक दोस्त मुझ जैसा मिलेगा
मेरी आँखों की जानिब तुम ना देखो
यहाँ मौसम बहोत भीगा मिलेगा
मेरे कातिल को कोई इतना पूछे
मिटा के मुझको आखिर क्या मिलेगा
न तुझसा कोई न मुझसा मिलेगा
बिछड़ के मुझ से तुम को क्या मिलेगा
कहाँ इक दोस्त मुझ जैसा मिलेगा
मेरी आँखों की जानिब तुम ना देखो
यहाँ मौसम बहोत भीगा मिलेगा
मेरे कातिल को कोई इतना पूछे
मिटा के मुझको आखिर क्या मिलेगा
दिलों में प्यार का मौसम रहे तो
खिला हर शाख पर गुंचा मिलेगा
उसे सब दिल बातें बोल देंगे
ख़ुदा का नेक जो इक बंदा मिलेगा
"सिया " तुम इन दिनों मायूस क्यूं हो
जिसे देखा बहोत टूटा मिलेगा
इक उम्मीदों का सवेरा आएगा
दूर जा कर दूर कब हो पायेगा
और वोह दिल के करीब आ जायेगा
गुल कभी सूखे नहीं हैं शाख पर
इक उम्मीदों का सवेरा आएगा
एक वीरानी फ़क़त रह जायेगी
बज़्म को जब लूटकर वो जायगा
खुश्बुओ से घर मेरा महकाएगा
इक दिन तो घर वो मेरे आएगा
हर हसीन गुल का मुकद्दर हैं यहीं
कोई उसको तोड़ के ले जायेगा
कोई सूरज से जरा ये पूछ ले
मेरे घर से कब अँधेरा जायेगा
उसपे अल्लाह का करम हो जायेगा
जो किसी की उलझने सुलझाएगा
कह ना दू उसको 'सिया' मैं दिल की बात
मुझको बातो में बहुत उल्झायेगा
दरमियां इक फासिला चलता रहा
क्या मिला कैसे मिला , चलता रहा
ज़िन्दगी का सिलसिला चलता रहा
हम तो थक कर रुक गए कुछ गाम पर
हाँ ! मगर वो काफिला चलता रहा
चाहकर भी हम न तेरे हो सके
दरमियां इक फासिला चलता रहा
हमसफ़र इक राह के हम-तुम हैं क्यूं
मन ही मन शिकवा -गिला चलता रहा
जब वो मुरझाया फ़ना वो हो गया
फ़ूल जब तक था खिला चलता रहा
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