सार जगत का सच्चा समझा
मोह माया सब तृष्णा समझा
वक़्त बुरा जब आया हम पे
तब हमने हर रिश्ता समझा
छोड़ दिया है साथ सभी ने
जिनको हमने अपना समझा
दुनिया की इस भीड़ में मैंने
खुद को कितना तनहा समझा
फिर खुशियों के पल आयेगे
हर सपने को सच्चा समझा
दुःख की इन लम्बी राहों का
कितना आसां रस्ता समझा
सिया भरम न टूटा अब तक
सच को भी इक सपना समझा
SIYA
फिर खुशियों के पल आयेगे
ReplyDeleteहर सपने को सच्चा समझा
दुःख की इन लम्बी राहों का
कितना आसां रस्ता समझा
सिया भरम न टूटा अब तक
सच को भी इक सपना समझा
फिर खुशियों के पल आयेगे
हर सपने को सच्चा समझा
वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
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