बात होगी तो रू -ब- रू होगी
आँखों आँखों में गुफ्तगू होगी .
बात चलती रहेगी ग़ालिब की
मीर की भी कभू कभू होगी .
सामने मेरे जब भी तुम होगे
फिर से जीने की आरज़ू होगी.
जिस में मंजिल का कोई ज़िक्र न हो
एक ऐसी भी जुस्तजू होगी..
काम आएगी मेरी जिंदादिली -
जब कभी मौत रू -ब -रू होगी
आपको मैं संभाल कर रक्खूं .
इसमें मेरी भी आबरू होगी .
हर क़दम फूँक फूँक रखना सिया
सब की नज़रों में सिर्फ तू होगी .
आँखों आँखों में गुफ्तगू होगी .
बात चलती रहेगी ग़ालिब की
मीर की भी कभू कभू होगी .
सामने मेरे जब भी तुम होगे
फिर से जीने की आरज़ू होगी.
जिस में मंजिल का कोई ज़िक्र न हो
एक ऐसी भी जुस्तजू होगी..
काम आएगी मेरी जिंदादिली -
जब कभी मौत रू -ब -रू होगी
आपको मैं संभाल कर रक्खूं .
इसमें मेरी भी आबरू होगी .
हर क़दम फूँक फूँक रखना सिया
सब की नज़रों में सिर्फ तू होगी .
वाह वाह सिया जी...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल..
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल .....लाजवाब अशआर से आरास्ता एक ऐसा शाहकार कि जिसे बार बार पढ़ने को जी चाहता है ......वाह
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