Wednesday, 13 May 2015

उसकी बातो में दम नहीं होता

मुझको यूँहीं भरम नहीं होता
उसकी बातो में दम नहीं होता
कितने खुदगर्ज़ ओ बेमुरव्वत हो
तुमको एहसास ग़म नहीं होता
दिल तो पत्थर का हो गया तेरा
मेरे अश्क़ों से नम नहीं होता
दिल तो छलनी किया है अपनों ने
इतना ग़ैरों में दम नहीं होता
इसका कोई ईलाज है तो बता
दर्द दिल का ये कम नहीं होता 

No comments:

Post a Comment