दिल में मेरे पैदा फिर अरमान हुआ
मुझ पर तेरा फिर से इक एहसान हुआ
मुझ पर तेरा फिर से इक एहसान हुआ
जाने कैसा ये मेरा सम्मान हुआ
मुझको लगता है मेरा अपमान हुआ
मुझको लगता है मेरा अपमान हुआ
वक़्त ने मेरे चेहरे पर ये क्या लिक्खा
देख के मुझको आईना हैरान हुआ
देख के मुझको आईना हैरान हुआ
जान बूझ कर हमने धोका खाया है
सोच समझ कर भी ये दिल नादान हुआ
सोच समझ कर भी ये दिल नादान हुआ
जिसकी ख़ातिर दुनिया से मैं ग़ाफ़िल थी
आज हुनर वोही मेरी पहचान हुआ
आज हुनर वोही मेरी पहचान हुआ
इन होठों पर हँसी न आये आज के बाद
ज़ारी मेरे हक़ में ये फरमान हुआ,
ज़ारी मेरे हक़ में ये फरमान हुआ,
दुनिया ने किस दौर में किसको बख़्शा हैं
सीता का भी इस जग में अपमान हुआ
सीता का भी इस जग में अपमान हुआ
siya
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-05-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1982 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteजालिम लगी दुनिया हमें हर शख्श बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से
नफरत से की गयी चोट से हर जखम हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से
सुन्दर सटीक और सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
कभी इधर भी पधारें
sundar rachna
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