Monday, 4 May 2015

दिल में भगवान का फिर वास नहीं हो सकता

दर्द दूजे का जो एहसास नहीं हो सकता
दिल में भगवान का फिर वास नहीं हो सकता
इन्द्रियों को भी करो वश में अगर इंसां हो
भूख जिंदा हो तो उपवास नहीं हो सकता
जिसको पढने में गुज़र जाए हज़ारों सदियाँ
ज़िन्दगी जैसा उपन्यास नहीं हो सकता ..
दफ़न हो जिसमें मुक़द्दर के उजाले सारे
इतना काला मेरा इतिहास नहीं हो सकता
ऐसी तन्हाई मेरे मन में बसी है की जहाँ
कोई इंसान मेरे पास नहीं हो सकता
मुस्कराहट की रिदा ओढ़ ली मैंने ए दोस्त
मेरे दुःख का तुम्हें आभास नहीं हो सकता
इतने दुःख सह के भी हंसती है लगातार सिया
और दुनिया को ये एहसास नहीं हो सकता

No comments:

Post a Comment