हमारे साथ अक्सर जो रहे हैं
उन्हीं के दर्द को हम ढो रहे हैं
नयी ताबीर के होने के डर से
पुराने ख्वाब ज़िंदा हो रहे हैं
जब उन से फासले बढ़ने लगे तो
हम अपने दायरों में खो रहे हैं
तसव्वुर तक नहीं अपनों का कोई
दीवारों से लिपट कर रो रहे हैं
ज़रा दीवानों की हिम्मत तो देखो
लुटा के दिल की दुनिया सो रहे हैं
हमारा साथ यूँ छोड़ा ख़ुशी ने
उदासी के पलों में खो रहे हैं
चुराते है वहीं नज़रें सिया से
निगाहों में बराबर जो रहे हैं
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