Tuesday 14 April 2015

उन्हीं के दर्द को हम ढो रहे हैं

हमारे साथ अक्सर जो रहे हैं 
उन्हीं के दर्द को हम ढो रहे हैं 

नयी ताबीर के होने के डर से 
पुराने ख्वाब ज़िंदा हो रहे हैं 

जब उन से फासले बढ़ने लगे तो 
हम अपने दायरों में खो रहे हैं

तसव्वुर तक नहीं अपनों का कोई 
दीवारों से लिपट कर रो रहे हैं 

 ज़रा दीवानों की हिम्मत तो देखो 
लुटा के दिल की दुनिया सो रहे हैं 

हमारा साथ यूँ छोड़ा ख़ुशी ने 
उदासी के पलों में  खो रहे हैं 

चुराते है वहीं नज़रें सिया से 
निगाहों में बराबर जो रहे हैं 
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