कैसे उजड़ा है मोहब्बत का नगर पूछो मत
उसके लफ़्ज़ों का मेरे दिल से गुज़र पूछो मत
कैसे अजदाद की तहज़ीब हुई हैं तक़सीम
कैसे काटा गया आँगन का शजर मत पूछो
ख्वाब सब उनके इशारों पे निछावर कर के
मैंने क्यों काट दिए अपने ही पर पूछो मत
मुफलिसी मुझको दिलासे तो दिलाती है मगर
देखना हैं तो ये ताऱीख उठा कर देखो
किसने छीना मेरे हाथों का हुनर पूछो मत
मुश्किलें मुझसे गले मिल के चली जाती हैं
कितना उलझा रहा जीवन का सफर पूछो मत
पर्देदारी के हुनर से हैं बख़ूबी वाक़िफ़
हमको मालूम है सब हमसे मगर पूछो मत
कैसे तन्हाई टपकती है मेरे कमरे में
काटता रहता है हर वक़्त ये घर पूछो मत
दिल ए हस्सास में चुपके से चला आता है
हाय इस दर्द का अंदाज़ ए हुनर पूछो मत
रेंगती ज़ीस्त की सच्चाई यही है आखिर
जाने कब ख़त्म हो साँसो का सफ़र पूछो मत
पागलों जैसे जो आसार सिया है मेरे
कौन से ग़म का हुआ दिल पे असर पूछो मत
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