अजब सा शोर मेरी ख़ामशी में ले आया
वो खींच कर मुझे फिर ज़िंदगी में ले आया
भले ही देर से लेकिन खुली तो हैं आँखे
तेरा फरेब मुझे रौशनी में ले आया
भटक रही थी मैं एहसास के अँधेरों में
तेरा ख्याल मगर चाँदनी में ले आया
भले ही देर से लेकिन खुली तो हैं आँखे
तेरा फरेब मुझे रौशनी में ले आया
सबब न पूछ तू मुझसे मेरी उदासी की
ये दर्द कौन मेरी ज़िंदगी में ले आया
दिलो ओ दिमाग़ पे हावी था एतबार तेरा
तेरा यक़ीन मुझे गुमरही में ले आया
हमारे ज़ख्मों को आखिर जुबान मिल ही गयी
हमारा दर्द हमें शायरी में ले आया
तेरा ही सबपे करम है तेरी ही रहमत है
तेरा ही नूर हमें रौशनी में ले आया
भटक रही थी मैं एहसास के अँधेरों में
तेरा ख्याल मुझे बंदगी में ले आया
ज़रा सी बात थी लेकिन समझ न पायी सिया
वो बदगुमानियाँ क्यूँ दोस्ती में ले आया
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