अजनबी की तरह मिला कोई
उस से करते भी क्या गिला कोई
इश्क़ का रोग जानलेवा है
इसकी होती नहीं iदवा कोई
आज ये दिल बड़ा ही भारी है
मुझको अच्छी खबर सुना कोई
मैं अकेली थी ज़ात में अपनी
काश दे जाता हौसला कोई
दाम कोई न दे सका उसका
आज बेमोल बिक गया कोई
आईने में दरार है कितनी
कितने हिस्सों में बँट गया कोई
मेरी बर्बाद हो गयी दुनिया
दूर से देखता रहा कोई
चल सिया अब यहाँ से कूच करें
हैं यहाँ पर कहाँ सगा कोई
----------------------------
उस से करते भी क्या गिला कोई
इश्क़ का रोग जानलेवा है
इसकी होती नहीं iदवा कोई
आज ये दिल बड़ा ही भारी है
मुझको अच्छी खबर सुना कोई
मैं अकेली थी ज़ात में अपनी
काश दे जाता हौसला कोई
दाम कोई न दे सका उसका
आज बेमोल बिक गया कोई
आईने में दरार है कितनी
कितने हिस्सों में बँट गया कोई
मेरी बर्बाद हो गयी दुनिया
दूर से देखता रहा कोई
चल सिया अब यहाँ से कूच करें
हैं यहाँ पर कहाँ सगा कोई
----------------------------
हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (07-04-2015) को "पब्लिक स्कूलों में क्रंदन करती हिन्दी" { चर्चा - 1940 } पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया
ReplyDelete