Sunday, 5 April 2015

उस से करते भी क्या गिला कोई

अजनबी की तरह  मिला कोई 
उस से करते भी क्या गिला कोई 

इश्क़ का रोग जानलेवा है 
इसकी होती नहीं iदवा कोई 

आज ये दिल बड़ा ही भारी है 
मुझको  अच्छी खबर सुना कोई 

मैं अकेली थी ज़ात में अपनी 
काश दे जाता हौसला कोई 

दाम कोई न दे सका उसका
आज बेमोल बिक गया कोई 

 आईने में दरार है कितनी 
कितने हिस्सों में बँट गया कोई

मेरी बर्बाद हो गयी दुनिया 
दूर से देखता रहा कोई

चल सिया अब यहाँ से कूच करें 
हैं यहाँ पर कहाँ सगा  कोई 
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2 comments:

  1. हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (07-04-2015) को "पब्लिक स्कूलों में क्रंदन करती हिन्दी" { चर्चा - 1940 } पर भी होगी!
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    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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