कुछ भी रही न तुझसे अब बात राब्ते की
गुंजाइशें नहीं हैं अब कोई सिलसिले की
जिनके फ़िराक में हम बीमार हो गए हैं
ज़हमत न की उन्होंने मेरा हाल पूछने की
शबनम की बूंदे आकर पलकों पे तैरती हैं
कुछ टीसती हैं यादें माजी के आईने की
तुमने सवाल का यूँ फ़ौरन जवाब माँगा
हमको मिली न मोहलत कुछ बात सोचने की
अब लौट के कभी भी मैं आ सकूँ न शायद
दूरी न होगी कम अब इस दिल के फासले की
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