फिर उदासी ने ली है अंगड़ाई
शाम कमरे यूँ उतर आई
अब कहीं कुछ नज़र नहीं आता
ज़िंदगी !तू मुझे कहाँ लायी
घर से बाहर मं किस तरह निकलूं
पावँ रोके हुए है तन्हाई
इश्क़ अब हो गया है बाज़ारू
हर तरह है वफ़ा के सौदाई
शोहरतों के सफ़र में हूँ लेकिन
उससे आगे है मेरी रुसवाई
तू भी होगा मेरी तरह तनहा
चाँद देखा तो तेरी याद आई
मेरे घर में है शोर मातम का
बज रही है कहीं पे शहनाई
शाम कमरे यूँ उतर आई
अब कहीं कुछ नज़र नहीं आता
ज़िंदगी !तू मुझे कहाँ लायी
घर से बाहर मं किस तरह निकलूं
पावँ रोके हुए है तन्हाई
इश्क़ अब हो गया है बाज़ारू
हर तरह है वफ़ा के सौदाई
शोहरतों के सफ़र में हूँ लेकिन
उससे आगे है मेरी रुसवाई
तू भी होगा मेरी तरह तनहा
चाँद देखा तो तेरी याद आई
मेरे घर में है शोर मातम का
बज रही है कहीं पे शहनाई
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-03-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1915 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब,बहुत सुंदर !शुभकामनायें.
ReplyDeletewah bahut sundar
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