Wednesday, 11 March 2015

फिर उदासी ने ली है अंगड़ाई

फिर उदासी ने ली है अंगड़ाई 
शाम कमरे यूँ उतर  आई 

अब कहीं कुछ नज़र नहीं आता 
ज़िंदगी !तू मुझे कहाँ  लायी 

घर से बाहर मं किस तरह निकलूं 
पावँ रोके हुए है तन्हाई 

इश्क़ अब हो गया है बाज़ारू 
हर तरह है वफ़ा के सौदाई 

शोहरतों के सफ़र में हूँ लेकिन 
उससे आगे है मेरी रुसवाई

तू भी होगा मेरी तरह  तनहा 
चाँद देखा तो तेरी  याद आई 

मेरे घर में है शोर मातम का 
बज रही है कहीं पे  शहनाई 

3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-03-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1915 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत खूब,बहुत सुंदर !शुभकामनायें.

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