ज़ाहिरा तो हैं दैरो हरम आपके
मुख़्तलिफ़ क्यों हैं दिल में सनम आपके
बस मेरे पास है बेगुनाही मेरी
अदल इन्साफ कुर्सी क़लम आपके
ज़िंदगी बोझ लगने लगी दिन ब दिन
आप मेरे हुए न और न हम आपके
एक वादा वफ़ा आप कर न सके
क्या हुए अहद ए लुत्फ़ ओ करम आपके
क़द्र उसकी न जानी कभी आपने
सुख में दुःख में थी जो हमक़दम आपके
हक़ की ख़ातिर उठाऊंगी आवाज़ मैं
क्यूँ सहूँगी ये ज़ुल्मो-सितम आपके
सब ग़मो से हमें भी बरी कर दिया
मेरे मालिक सिया पर करम आपके
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