Monday, 23 February 2015

मुख़्तलिफ़ क्यों हैं दिल में सनम आपके

ज़ाहिरा तो हैं दैरो हरम आपके मुख़्तलिफ़ क्यों हैं दिल में सनम आपके बस मेरे पास है बेगुनाही मेरी अदल इन्साफ कुर्सी क़लम आपके ज़िंदगी बोझ लगने लगी दिन ब दिन आप मेरे हुए न और न हम आपके एक वादा वफ़ा आप कर न सके क्या हुए अहद ए लुत्फ़ ओ करम आपके क़द्र उसकी न जानी कभी आपने सुख में दुःख में थी जो हमक़दम आपके हक़ की ख़ातिर उठाऊंगी आवाज़ मैं क्यूँ सहूँगी ये ज़ुल्मो-सितम आपके
सब ग़मो से हमें भी बरी कर दिया मेरे मालिक सिया पर करम आपके

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