मेरा दिल शोर से घबरा गया है
मुझे तनहा ही रहना भा गया है
न जाने कब तलक़ मंज़िल पे पहुँचें
सफ़र से दिल मेरा उकता गया है
उसे रास आई न बाहर की दुनिया
क़फ़स में फिर परिंदा आ गया है
मैं समझी थी भुला बैठी हूँ उसको
मुझ वो आज फिर याद आ गया है
मेरे दिल को नहीं समझा किसी ने
यहीं ग़म मेरे दिल को खा गया है-
अबद तक साथ कब किसने निभाया
यहाँ से तो हर एक तनहा गया है
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