ख्याल उसका हर एक लम्हा ज़मीन ए दिल पे मचल रहा है
उसी का इक शेर हूँ सिया मैं जो ज़िंदगी की ग़ज़ल रहा है
मोहब्बतों का उरूज मुझसे न पूछिये किस मुक़ाम पर हूँ
वो मेरी नींदों में जागता है,वो मेरे ख़्वाबों में पल रहा है
मिले जो हम से वो बाद मुद्दत लिपट के हमसे वो रो पड़े हैं
कई बरस की तपिश का लावा है आँख से जो निकल रहा है
जिसे मुहाफ़िज़ समझ के तुमने गले लगाया, पनाह दी थी
समझ में आया तुम्हारा क़ातिल तुम्हारे घर में ही पल रहा है
उस आने वाले की मुन्तज़िर हैं सिया मेरी आती जाती सांसे
निगाह देहलीज़ पर टिकी है चराग़ आशा का जल रहा है
सुन्दर प्रस्तुति...
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