Sunday, 18 January 2015

वो दर्द लफ्ज़ की तफ़्सीर में नहीं आया

 लिखा जो अश्क से ,तहरीर में नहीं आया 
 वो दर्द लफ्ज़  की तफ़्सीर में नहीं आया  

मुझे  कुछ और जकड ,दुश्मनी की बंदिश में 
 लहू  का ज़ायक़ा  ज़ंजीर में नहीं आया 

हो दर्द हल्का तो,झूठी ख़ुशी भी मिल जायें 
इक ऐसा लम्हा भी तक़दीर में नहीं आया 

उसे भी हिज्र ने मुफ़लिस बना दिया शायद 
पलट के वो कभी जागीर में नहीं आया 

वो मेरी आँखों पे क़ाबिज़ रहा सिया लेकिन 
किसी भी ख़्वाब की ताबीर में नहीं आया 

Likha jo ashk se .tahreer me nahi aaya .
Wo dard lafz ki tafseer mein nahi'n aaya

 mujhe  kuch aor jakad ,dushmani ki  bandish me .
Lahoo ka zaaeqa zanjeer  me  nahi  aaya

ho dard halka to jhoothi khushi bhi mil jaaye 
ik aisa lamha bhi taqdeer mein nahi aaya 

use bhi  hijr ne muflis bana diya shayad 
palat ke apni wo jageer mein nahi aaya 

wo meri aankho pe qabiz raha siya lekin 
kisi bhi khwaab ki taabeer mein nahi aaya 

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