झूठ से दिल को बहलाना क्य
लौट के उसको अब आना क्या
लौट के उसको अब आना क्या
कोई नहीं जब देखने वाला
क्या खिलना और मुरझाना क्या
क्या खिलना और मुरझाना क्या
जीते जी जब कद्र नहीं की
क्या रोना अब पछताना क्या
क्या रोना अब पछताना क्या
चार दिनों में ढल जाएगा
ऐसे रूप पे इतराना क्या
ऐसे रूप पे इतराना क्या
माज़ी के सब नक़्श मिटा दो
ज़ख्म पुराने सहलाना क्या
ज़ख्म पुराने सहलाना क्या
तर्क ए ताल्लुक़ खेल नहीं है
छोड़ दिया फिर अपनाना क्या
छोड़ दिया फिर अपनाना क्या
सिया समझ का फेर है सारा
क्या थी हकीकत,अफ़साना क्या
क्या थी हकीकत,अफ़साना क्या
jhooth se dil ko bahlana kya
laut ke usko ab aana kya
koi nahi jab dekhne wala ,
kya khilna aor murjhana kya
kya khilna aor murjhana kya
jeete ji jab qadr nahi ki
kya rona ab pachtana kya
kya rona ab pachtana kya
char dino mein dhal jaayega
aise roop pe itrana kya
aise roop pe itrana kya
mazi ke sab naqsh mita do
zakhm purane sahelana kya...
zakhm purane sahelana kya...
tark e ta,aluq khel nahi hai
choor diya jab ,apnana kya
choor diya jab ,apnana kya
siya samajh ka pher hai sara
kya thi haqeeqat ,afsana kya
kya thi haqeeqat ,afsana kya
roiye zaar-zaar kyun kijiye haay-haay kya...
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