Friday, 30 January 2015

दिल से वो दूर भी हुआ ही नहीं



उससे दिल तो  कभी मिला ही नहीं 
दिल से वो दूर तो हुआ ही नहीं 

सारी दुनिया की फ़िक्र हैं उसको 
मेरे बारे में सोचता ही नहीं 

कैसे मैं अपने आप को देखूँ 
मेरे कब्ज़े  में आइना ही नहीं

चल दिया फेर कर नज़र ऐसे 
जैसे मुझको वो जानता ही नहीं 

हाथ उठते तो है दुआ के लिए 
और लब पर कोई दुआ ही नहीं 

बे ज़मीरी की इन्तेहा ये हैं  
ज़ुल्म कहता हैं मैं  बुरा ही  नहीं 

मुझको इस ख़ुदग़रज़ ज़माने से 
नेकियों का मिला सिला ही नहीं 

सिया 

1 comment: