इतना दिल पे असर नहीं लेते
जाम अश्कों से भर नहीं लेते
जिसकी आब ओ हवा हो अपनी सी
क्यों कहीं ऐसा घर नहीं लेते
बदगुमानी को पाल कर दिल में
दूर अपनों को कर नहीं लेते
फूल से खिल उठोगे दो पल में
थोड़ा तुम क्यूँ सँवर नहीं लेते
रेत तपती है पावं है नाज़ुक
आप मेरी ख़बर नहीं लेते
क्यों वो हंसती हुई इन आँखों का
दर्द महसूस कर नहीं लेते
खुद नज़र मैं रहूँ सिया कब तक
सुध क्यूँ अहल ए नज़र नहीं लेते
सिया
जाम अश्कों से भर नहीं लेते
जिसकी आब ओ हवा हो अपनी सी
क्यों कहीं ऐसा घर नहीं लेते
बदगुमानी को पाल कर दिल में
दूर अपनों को कर नहीं लेते
फूल से खिल उठोगे दो पल में
थोड़ा तुम क्यूँ सँवर नहीं लेते
रेत तपती है पावं है नाज़ुक
आप मेरी ख़बर नहीं लेते
क्यों वो हंसती हुई इन आँखों का
दर्द महसूस कर नहीं लेते
खुद नज़र मैं रहूँ सिया कब तक
सुध क्यूँ अहल ए नज़र नहीं लेते
सिया
सुन्दर रचना...
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