Sunday 11 January 2015

आपसे दिल कभी मिला ही नहीं

कैसे कह दूँ की फ़ासला  ही नहीं
आपसे दिल कभी मिला ही नहीं 

सारी दुनिया की फ़िक्र हैं उसको 
मेरे बारे में सोचता ही नहीं 

कैसे मैं अपने आप को देखूँ 
मेरे कब्ज़े  में आइना ही नहीं

चल दिया फेर कर नज़र ऐसे 
जैसे मुझको वो जानता ही नहीं 

हाथ उठते तो है दुआ के लिए 
और लब पर कोई दुआ ही नहीं 



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