कैसे कह दूँ की फ़ासला ही नहीं
आपसे दिल कभी मिला ही नहीं
सारी दुनिया की फ़िक्र हैं उसको
मेरे बारे में सोचता ही नहीं
कैसे मैं अपने आप को देखूँ
मेरे कब्ज़े में आइना ही नहीं
चल दिया फेर कर नज़र ऐसे
जैसे मुझको वो जानता ही नहीं
हाथ उठते तो है दुआ के लिए
और लब पर कोई दुआ ही नहीं
बहुत खूब...सुन्दर...
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