Wednesday, 7 January 2015

नज़्म ----अतीत की चादर


एक रूठी उदास शाम को जब 
कितनी परतें पुरानी यादो की 
कैसे झकझोरती हैं आके मुझे 
खोलने को अतीत की चादर 
घेर लेती है अनायास आकर 
वो जो धुँधली सी हो चुकी है अब 
वोही तस्वीरें उभर आती हैं 
मेरे माज़ी की है जो परछाई 
मेरी आँखों में उतर जाती है 
और मुझको बहुत रुलाती है 
ek ruthi udaas shaam ko jab 
kintni parte'n puaarni yadon ki
kaise jhakjhorti  hai aake mujhe 
kholne ko  ateet ki chadar 
gher leti  hain anayaas aakar 
 wo jo dhundli si  ho chuki hain ab 
wohi  taswere'n ubhar aati hain 
mere mazi ki aake  parchhai 
meri aankhon mein utar  jati hai
Aur mujhko bahut rulati hai '

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