ख़ुद को जीने की अदा यूँ भी सिखाई मैंने
चंद लम्हों की ख़ुशी थी जो चुराई मैंने
साथ चलती रही मेहरुमियां हरदम मेरे
ज़िंदगी तुझसे बहुत खूब निभायी मैंने
उसकी रुस्वाई से घर की मेरे रुस्वाई है
उसकी हर बात जो है ऐब छुपाई मैंने
कोई उम्मीद न ख़्वाहिश, तकाज़ा तुझसे
अपनी हर बात ही सीने में दबायी मैंने
लेके एहसान ये उसका मैं सिया क्या करती
आग ख़ुद अपनी ही अर्थी को लगायी मैंने
बहुत ही अच्छा...
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