Sunday, 30 November 2014

हर कोई अपना आप गिनाने में रह गया

हर सिम्त तमाशा ही ज़माने में रह गया 
हर कोई अपना आप गिनाने में रह गया 

इल्ज़ाम सिर्फ़ मुझपे लगाता रहा है वो 
मेरा ही नाम सारे ज़माने में रह गया ?

ख़ुद अपने आपको नहीं देखा टटोल कर 
वो दूसरों के पाप गिनाने में रह गया 

दुनिया में नफरतों के अलावा है और कुछ 
क्या बस ख़लूस मेरे घराने में रह गया ?

कब की निकाल दी है ये दुनिया तेरे लिए 
इक तेरा नाम दिल के ख़ज़ाने में रह गया 

हासिल हुई थी, उसने मगर खो दिया मुझे 
फिर उसके बाद वो मुझे पाने में रह गया 

खिड़की पे बैठी सोच रही थी वो कुछ कहे 
गाड़ी चली वो हाथ हिलाने में रह गया 

मंज़िल पे गामज़न थे ये मेरे क़दम सिया 
वो रस्ते से मुझको हटाने में रह गया 

Har simt tamasha hi zamane mein rah gaya
Har koi apna aap dikhane mein  rah gaya

Ilzaam sirf mujh pe lagata raha hai wo
mera hi naam saare zamane mein  rah gaya???

khud apne aap ko nahi dekha tatol kar 
wo Doosron ke paap ginane mein rah gaya 

Duniya me nafrato.n ke ilawa hai aur kuch
Kya bas khuloos mere gharaane mein rah gaya ?

Kab ki nikaal di hai ye duniya tere liye
Ik tera naam dil.ke khazane mein rah gaya

Hasil huwi thee ..uss ne magar kho diya mujhe ..
Phir uske baad wo mujhe paane mein  rah gaya

 manzil pe gamzan the ye mere qadam siya 
wo raste se mujhko hatane mein rah gaya

1 comment:

  1. इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा क़तील,
    जब खुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा...

    सुन्दर प्रस्तुति...

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