Friday, 17 October 2014

बोझ हर ग़म का तुझे तनहा उठाना होगा

तू समझती है तेरे साथ ज़माना होगा 
बोझ हर ग़म का तुझे तनहा उठाना होगा

मैं तुझे दिल में बसा भी नहीं सकती अपने 
एक दिन छोड़ के ख़ुद  को मुझे जाना होगा 

अब मोहब्बत की ख़लिश काफी नहीं है दिल को 
दर्द सीने में कोई और जगाना होगा

फूल ही फूल हो किस्मत में ज़रूरी तो नहीं 
तुमको ख़ारों से भी दामन को सजाना होगा 

अजनबी होते हुए अपना नज़र आता है 
उससे लगता है कोई रिश्ता पुराना होगा  

एक सन्नाटा सा आँखों में उतर आया है 
दिल को शायद कोई तूफ़ान उठाना होगा 

फिर सर ए शाम तेरी आहटे महसूस हुई 
रात भर यूँहीं चराग़ों को जलाना  होगा 


tu samjhti  hai tere sath zamana hoga
bojh har gham ka tujhe tanha  uthana hoga 

main tujhe dil mein basa bhi nahi sakti apne 
ek din chhod ke khud ko mujhe jana hoga 

ab mohbbat ki khalish kaafi nahi hai dil ko 
dard seene mein koyi aur jagana hoga 

phool hi phool ho kismat mein zaruri to nahi
tumko Khaaro'n se bhi daman ko sajana hoga

ajnabi hote hue apna nazar aata hai
us se lagta hai koi rishta purana hoga

ek sannta sa aankho mein utar aaya hai
dil ko shayad koyi toofaan uthaana hoga

phir sar e sham teri aahte mehsus hui 
raat bhar aaj charagon ko jalana hoga 


1 comment:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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