तू समझती है तेरे साथ ज़माना होगा
बोझ हर ग़म का तुझे तनहा उठाना होगा
मैं तुझे दिल में बसा भी नहीं सकती अपने
एक दिन छोड़ के ख़ुद को मुझे जाना होगा
अब मोहब्बत की ख़लिश काफी नहीं है दिल को
दर्द सीने में कोई और जगाना होगा
फूल ही फूल हो किस्मत में ज़रूरी तो नहीं
तुमको ख़ारों से भी दामन को सजाना होगा
अजनबी होते हुए अपना नज़र आता है
उससे लगता है कोई रिश्ता पुराना होगा
एक सन्नाटा सा आँखों में उतर आया है
दिल को शायद कोई तूफ़ान उठाना होगा
फिर सर ए शाम तेरी आहटे महसूस हुई
रात भर यूँहीं चराग़ों को जलाना होगा
tu samjhti hai tere sath zamana hoga
bojh har gham ka tujhe tanha uthana hoga
main tujhe dil mein basa bhi nahi sakti apne
ek din chhod ke khud ko mujhe jana hoga
ab mohbbat ki khalish kaafi nahi hai dil ko
dard seene mein koyi aur jagana hoga
phool hi phool ho kismat mein zaruri to nahi
tumko Khaaro'n se bhi daman ko sajana hoga
ajnabi hote hue apna nazar aata hai
us se lagta hai koi rishta purana hoga
ek sannta sa aankho mein utar aaya hai
dil ko shayad koyi toofaan uthaana hoga
phir sar e sham teri aahte mehsus hui
raat bhar aaj charagon ko jalana hoga
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार- 19/10/2014 को
ReplyDeleteहिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 36 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,