Friday, 29 August 2014

तुम्हारे खत के सब अल्फ़ाज़ लगते है नगीने से


मुफ़ाईलुन........ मुफ़ाईलुन....... मुफ़ाईलुन........ मुफ़ाईलुन 
1222..............1222.............1222..............1222

सजाया तुमने हर एहसास कुछ ऐसे क़रीने से 
तुम्हारे खत के सारे लफ़्ज़  लगते है नगीने से

मैं शेरों में भला कब तक पिरोऊँ दर्द के किस्से 
इधर आ ए ख़मोशी अब लगा लूँ तुझको सीने से

हमारा दिल परेशां हो गया है दश्त ए वहशत में
बहुत दुश्वारियाँ हैं ज़िंदगी में कुछ महीने से

न हम शंकर न हम सुकरात लेकिन हक़ के हामी हैं 
कहाँ डरते हैं हम भी ज़िंदगी का ज़हर पीने से

ये जब आता है आँखो से ज़ियादा ही बरसता है 
जलन रहने लगी है मुझको सावन के महीने से

sajaya tumne har ehsaas kuch aise kareene se 
tumahare khat ke sare lafz  lagte hai nageene se

main shero'n me'n bhala kab tak pirou'n dard ke kisse
Idhar aa ai khamoshi ab laga loo'n tujhko seene se.

hamara dil paresha'n ho gaya hai dasht-e wehshat mein
bahut dushvaariya'n hain zindgi mein kuch maheene se

Na ham Shankar na ham suqraat lekin haq ke haami hai"n 
Kaha'n darte hai'n ham bhi zindagi ka zehr peene se

Ye jab aata hai aankho'n se ziyaada hi barasta hai :
jasad rahne lagi hai mujhko saawan ke maheene se.
..

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