Thursday, 28 August 2014

ज़िंदगी अब मुझे सताने लगी


ख़ौफ़ तन्हाइयों से खाने लगी
ज़िंदगी अब मुझे सताने लगी

जाने इस नींद को हुआ क्या है
रात भर ये मुझे जगाने लगी

ज़िंदगी के उदास लम्हों में
ग़र्द मायूसियों की छाने लगी

अभी पिछला ही ख्वाब टूटा था
फिर नया ख़्वाब इक सजाने लगी

कोई लम्हा ख़ुशी का आया तो
मेरी तक़दीर मुँह चिढ़ाने लगी

दफ़्न उसको वहीं पे कर देंगे
कोई हसरत जो सर उठाने लगी

ज़िंदगी ने तो आज़माया है
मौत भी आँख अब मिलाने लगी

Khauf tanhayion Se khane lagi
zindgi ab mujhe satane lagi

Jaane is neend ko hua kya hai
raat bhar ye mujhe jagane lagi

Zindagi k udaas lamhon mein
gard_mayoosiyon ki chhane lagi

abhi pichla hi khwab tuta tha
phir naya khwab ik sajane lagi

koyi lamha khushi ka aaya to
meri taqdeer munh chidhane lagi

dafn uskoo waheen pe kar denge
koyi hasrat jo sar uthane lagi

zindagi ne to aazamaya hai
maut bhi aankh ab dikhane lagi

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