Sunday, 3 August 2014

तुमने नज़रों से ग़र उतारा तो

तुमने नज़रों से ग़र उतारा तो 
टूट  जायेगा दिल बेचारा तो 

जब ग़म ए ज़िंदगी ने मारा तो 
कर लिया आपने किनारा तो 

ख़ुद से पहचान हो गयी मेरी 
वक़्त तन्हा ज़रा गुज़ारा तो 

आइना क्यों चटक गया  तौबा 
मैंने ख़ुद को ज़रा सँवारा तो 

आप को क्यों खटक गया इतना 
दर्द काग़ज़ पे जब उतारा तो 

ज़ख्म मुझको भी  लग गए गहरे 
ख़ैर वो शख़्स मुझसे हारा तो 

फिर न मुझसे कभी जुदा होना 
मिल गए हो जो अब दुबारा तो 

इस क़दर मत कुरेद माज़ी को 
शोला बन जाएगा शरारा तो 

कोई  अपना किसी से  बिछड़ा है 
देखो टूटा है फिर सितारा तो 


tumne nazro'n se gar utara to 
tut jaayega dil bechara to

jab gham-e-zindagi ne mara to 
kar liya aap ne kinara to 

khud se pahchan ho gayi meri 
waqt tanha zara guzara to

aaina kyo chatak gaya tauba 
maine khud ko zaraa sanwara to 

aap ko kyo khatak gaya itna
Dard kaghaz pe jab utara to

zakhm mujhko bhi lag gaye gahre 
khair wo shakhs mujhse haara to 

phir na mujhse kabhi juda hona 
mil gaye ho jo ab dubara to 

is qadar mat qured mazi ko 
shola ban jaayega shrara to

koyi apna kisi se bichada hai
dekho tuta hai phir sitara to

No comments:

Post a Comment