जैसे माहौल में इन्सां का गुज़र होता है
उसके किरदार में वैसा ही असर होता है
जिनको काबू नहीं होता है ज़बाँ पर अपनी
पार करते हैं हदें , वहमो गुमान पर अपनी
सिर्फ लफ्ज़ो पे वफ़ा का जो भरम रखते हैं
अमली दुनिया में वो कब अपने क़दम रखते हैं ?
हक़ के इज़हार पे हर वक़्त जो इंकार करें
हर किसी बात पे जो तंज़ भरे वार करें
एक इक सांस का लेना भी जो आज़ार करें
ज़िंदा रहने की तमन्ना भी जो दुश्वार करें
घर का सुख क्या है रवादारी किसे कहते हैं
जानते जो नहीं खुद्दारी किसे कहते हैं
बेहिसी ऐसी के खुद का भी नहीं करते यक़ीं
आसमानो की ललक से ही खिसकती है ज़मी
siya
Dilbag Virk ji bahut bahut shukria aapka jo apane meri is nazm ko apne manch par charcha ke yogya samjha ....salamati ho
ReplyDeleteVaanbhatt ji bahut bahut shukria aapki daad ka salamati ho
ReplyDeleteखूबसूरत अल्फ़ाज़ों में पिरिया है आपने मन के जज़्बातों को।
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