Friday, 18 April 2014

बिन तेरे कुछ मुझे सूझता ही नहीं

tere dar ke siwa rasta he nahin 
bin tere kuch mujhe sujhta he nahi 

sirf mahboob ke wasl se hai shifa 
ishq ke marz ki kuch dawa hi nahi

kyu na ye jaan uspe nichavar karu'n
uske jaIsa koi chahta hi nahiN

jhoothe ilzaam mujhpe lagata hai jo 
wo mujhe theek se janta hi nahin

khudgarz is zamane se mujhko siya
nekiyo.n ka mila kuch sila hi nahin

be zameeri ki bhi intehaa ho gai
jurm kar ke kahe ;main bura hi nahin

तेरे दर के सिवा रास्ता ही नहीं
बिन तेरे कुछ मुझे सूझता ही नहीं

सिर्फ मेहबूब के वस्ल से है शिफ़ा
इश्क़ के मर्ज़ की कुछ दवा ही नहीं

क्यों न ये जान उसपे निछावर करूँ
उसके जैसा कोई चाहता ही नहीं

झूठे इल्ज़ाम मुझपे लगाता है जो
वो मुझे ठीक से जानता ही नहीं

बे ज़मीरी कि भी इन्तेहाँ हो गयी
जुर्म करके कहे, मैं बुरा तो नहीं

ख़ुदग़रज़ इस ज़माने से मुझको सिया
नेकियों का मिला कुछ सिला ही नहीं 

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