दिल में सोयी हुई यादों को जगाया न गया
दश्त में शहर ए तमन्ना को उगाया न उगाया
अपनी महफ़िल से भला खाक़ उठाती तुमको
बोझ हस्ती का ही जब हमसे उठाया न गया
इतना मजबूत रहा है तेरी यादों का हिसार
ज़श्न ए तन्हाई भी अब हमसे मनाया न गया
कर रहे है वो सभी प्रयावरण पे तक़रीर
पेड़ गमले में कभी जिनसे लगाया न गया
शोर ए मातम था बहोत आपकी बस्ती में ज़नाब
ऐसे माहौल में हमसे भी तो गाया न गया
दिल के जज़्बात को तहरीर किया है फिर भी
मुझसे आगे मिरी रुसवाई का साया न गया
क़ैद खाने के तरानों से बग़ावत उभरी
ज़ुल्म से फ़िक्र को क़ैदी तो बनाया न गया
मैंने इस दिल में बसा रक्खी हैं तेरी यादे
दूसरा कोई भी इस शहर में आया न गया ...
दिल के जज़्बात को तहरीर किया है फिर भी
ReplyDeleteमुझसे आगे मिरी रुसवाई का साया न गया
किस कदर तन्हा तेरी शायरी का मिज़ाज़ है
तूने दिल में छुपा रक्खा क्या कोई राज़ है...........