सब्र को अपने यूं आज़माया करो
शिद्दत ए ग़म में भी मुस्कुराया करो
दूरियां सब दिलों की मिटाया करो
तुम चराग़ ए मोहब्बत जलाया करो
धूप शोहरत की दो दिन में ढल जायेगी
तुम मोहब्बत भी थोड़ी कमाया करो
हम बुजुर्गों से सुन कर भी समझे नहीं
दीन ए हक़ के लिए सर कटाया करो
आइना तुमने देखा नहीं आज तक
उंगुलियां यूं न सब पर उठाया करो
सर की टोपी ज़मीं पर गिरे एकदम
इतना ऊँचा ना सर को उठाया करो
दफ़्न हैं मेरी आँखों में सपने कई
ये कहानी न दिल को सुनाया करो
अपनी मंज़िल को मुश्किल बना लो सिया
राह में ख़ुद ही कांटे बिछाया करो
No comments:
Post a Comment