जो तेरे दिल में कभी रहता था उलफ़त बन के
आज रहता है तेरे दिल में वो नफ़रत बन के।
किस क़दर शौक़ है इलज़ाम लगाने का तुझे
रह गयी है तेरी हर बात शिकायत बन के
दिल में हसरत ही रही काश के हम भी जीते
कुछ पलों के ही लिए तेरी जरुरत बनके ।
जिस को समझी थी मसीहा वो तो क़ातिल था मेरा
सामने आया है इक तल्ख़ हकीकत बन के
जिस से इस दिल ने लगाई थी करम की उम्मीद
उस ने इस दिल पे सितम ढाए क़यामत बन के।
ऐ सिया आज वही बन गया पत्थर का सनम
सामने आया था जो प्यार की मूरत बन के
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