जरा सी बात पे इतने वबाल करता है
वो इस कदर मेरा जीना मुहाल करता हैं
हर एक बात पे सौ सौ सवाल करता है
नए ज़माने का बच्चा कमाल करता है
तू किस उम्मीद पे शौक़ -ए -विसाल करता है
पशेमां खुद भी है वो अपनी बेवफाई पे
वो जुल्म करता है और फिर मलाल करता है
पसीना बनके जो उभरा है मेरे माथे पर
यही लहू मेरी रोजी हलाल करता है
हमेशा उसने नवाज़ा हैं दर्द _ओ_ ग़म से मुझे
वो मेरे शौक का कितना खयाल करता हैं
जो थाम लेता है खुद बढ़के हाथ मुफलिस के
खजाने उसके खुदा मालामाल करता है
सिया मैं क्या कहू अब और उसके बारे में
वो नेकियां भी बड़ी बेमिसाल करता है
शिया जी
ReplyDeleteएक बार फिर अच्छी रचना
बहुत बहुत शुभकामनाएं
lot of thanks for your nice appreication.MAHENDER JI ..GOD BLESS U
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