छुप छुप के ज़माने से आँखों को भिगोते हैं
हम दिन में तो हँसते हैं पर रात में रोते हैं
तू ग़ैर का हो जाये और हम को क़रार आये
यह दर्द तो वो जाने जो अपनों को खोते हैं
बस फ़िक्र में दौलत की,हैं ऊंचे मकां वाले
उनसे तो ग़रीब अच्छे जो चैन से सोते हैं
अंजाम बुराई का होता है बुरा यारो
वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं
करते हैं "सिया" उसकी तस्वीर से हम बातें
तनहाई में रह कर भी तनहा नहीं होते हैं
हम दिन में तो हँसते हैं पर रात में रोते हैं
तू ग़ैर का हो जाये और हम को क़रार आये
यह दर्द तो वो जाने जो अपनों को खोते हैं
बस फ़िक्र में दौलत की,हैं ऊंचे मकां वाले
उनसे तो ग़रीब अच्छे जो चैन से सोते हैं
अंजाम बुराई का होता है बुरा यारो
वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं
करते हैं "सिया" उसकी तस्वीर से हम बातें
तनहाई में रह कर भी तनहा नहीं होते हैं
बढिया
ReplyDeleteबहुत खूब सिया जी....
ReplyDeleteमहेन्द्र श्रीवास्तव JI !! nawazish ke liye bahut bahut shukriya SALAMAT RAHE
ReplyDeleteVIDYA JI BAHUT BAHUT SHUKRIA AAPKA SALAMAT RAHE
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