Friday 28 October 2011

वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं

छुप छुप के ज़माने से आँखों को भिगोते हैं
हम दिन में तो हँसते हैं पर रात में रोते हैं

तू ग़ैर का हो जाये और हम को क़रार आये
यह दर्द तो वो जाने जो अपनों को खोते हैं

बस फ़िक्र में दौलत की,हैं ऊंचे मकां वाले
उनसे तो ग़रीब अच्छे जो चैन से सोते हैं

अंजाम बुराई का होता है बुरा यारो
वह फूल नहीं पाते जो काँटों को बोते हैं

करते हैं "सिया" उसकी तस्वीर से हम बातें
तनहाई में रह कर भी तनहा नहीं होते हैं

Sunday 23 October 2011

कुछ भी दुनिया में नहीं मिलता मुसीबत के सिवा

कुछ भी दुनिया में नहीं मिलता मुसीबत के सिवा
और कोई राह नहीं राह-ए-मोहब्बत के सिवा

ये अलग बात की मैं बोल दूँ हँस कर सबसे
पर मुझे कुछ नहीं भाता तेरी सूरत के सिवा

बारहा देख के मुझको ये ख्याल आया है
तेरी तस्वीर में क्या रक्खा है हैरत के सिवा

अब न पूछो मेरी ख्वाहिश या तमन्ना का मिज़ाज
शिद्दतें और भी हैं प्यार की शिद्दत के सिवा

तुझ से बस इतनी गुज़ारिश है "सिया " की जानाँ
कुछ न दे मुझको मेरी जान मोहब्बत के सिवा
-----------------

Thursday 20 October 2011

हर बुराई से हमें उबार तू


ऐ ख़ुदा बस इक मेरा गमख्वार तू
इन ग़मों से रफ़्ता रफ़्ता तार तू 

इक तेरे दीदार की हसरत मुझे 
तू मेरी हर सांस में , संसार तू 

इक हसीं दुनिया बनाई आपने 
बन्दे क्यों करता रहा बेकार तू 

ये ख़ुशी सच्ची तुझे मिल जाएगी 
किसलिए मन हो रहा बेज़ार तू 

लोग नफ़रत की तिजारत में मगन 
इनके दिल में दे दया और प्यार तू

राह नेकी और भलाई की दिखा 
हर बुराई से हमें उबार तू 

ए खुदा तुमसे ये मेरी इल्तेज़ा 
भटकी कश्ती हूँ लगा दे पार तू

ज़िन्दगी नेक राह हो जाये

ज़िन्दगी नेक राह हो जाये
माफ़ मेरा गुनाह हो जाये

हौसले अपने साथ रख लेना
रात जब भी स्याह हो जाये

किसी मजलूम को सताना न
दिल से निकले तो आह हो जाये |

दर्दमन्दो के दर्द बांटे जो
तो खुदा की निगाह हो जाये

प्यार से जिंदगी बिताये 'सिया'
सबको जीने की चाह हो जाये

उम्र हर हाल में बितानी है॥

माना बेरंग ज़िन्दगानी है
उम्र हर हाल में बितानी है॥

इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार
ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है॥

हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ
याद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥

भीगा मौसम है अब तो आ जाओ
देखो फसलों का रंग धानी है॥

उनके कूचे से होके आई :सिया:
यह हवा इस लिए सुहानी है॥

Sunday 16 October 2011

आज मेरा दिल न जाने, इतना क्यूँ उदास है
!इक घुटन सी दिल में हैं कैसा ये एहसास है

रौशनी भी अब दियों की, फूंकती है घर मेरा
आग को भी मेरे घर से, दुश्मनी कुछ खास है

मैं तेरी तस्वीर दिल में, रख रही हूँ आज तक
इक तसव्वुर से ही तेरे जागती ये प्यास है

साथ तेरा गर मिले, किस्मत से शिकवा ना रहे
आये मुश्किल ज़िन्दगी में वो भी हमको रास है

क्यूं मुझे ठुकरा रहे हो, आप दौलत के लिए
वो कहाँ मुफ़लिस है आख़िर इश्क जिसके पास है

मैं "सिया" हूँ ज़िन्दगी से प्यार मुझको है बहुत
मुझको तो हर एक पल से बस ख़ुशी की आस है

मेरी बन्दगी का का सवाल है

तू ही ख्व़ाब तू ही ख़याल है
तू जवाब तू ही सवाल है

तेरा साथ कैसे मैं छोड़ दूं
मेरी बन्दगी का का सवाल है

तू जो दूर हो तो मैं क्या करूं
मुझे सांस लेना मुहाल है

तेरा रूप जैसे के चाँद हो
के तू चांदनी की मिसाल है

न किसी का ऐसा हसीन रुख
न किसी का ऐसा जमाल है

कभी आ के इतना तो देख ले
तेरे बिन "सिया" का जो हाल है

मेरा केडा घर वे रब्बा .....



इक ही गल बस सुनदी आई धीए तू ते हैं परायी
अपने ही जद कहन पराया दुखदा है दिल अख भर आई

धी दा वी ते भैन दा वी मैं सारे फ़र्ज़ निभादी आई
क्यों अपनी होंदे होए, कुडिया नु सब कहन परायी

व्या के जद दूजे घर आई ओथे वि मैं रही परायी
सबनू खुश करने दी खातिर मैं ता अपनी उम्र गवाई

मैं ता सारे फ़र्ज़ निभाए,पर किसी ने मेरी कदर ना पाई
धीया पुत्तर व्या दित्ते ने, घर विच हुन हैं नू मेरी आयी

माँ लगदी हुन बोझ जिन्ना नु ओना दे वी नाल निभाई
इक औरत दा घर हैं केडा आज तक मैंनु समझ ना आयी

रोकता रहा ज़मीर वैसे ख़ता से पहले

सोच लीजिए इन 'नाज़-ओ-अदा' से पहले
न जाये मर खामखाँ कोई क़ज़ा से पहले

ख़ताएँ जारी रही तमाम उम्र यूं ही
रोकता रहा ज़मीर वैसे ख़ता से पहले

हो सके तो देखना कभी नजदीक आकर
बरसात होती है कैसे घटा से पहले

यकीन दिलाऊं तुझे कैसे ऐ 'जां-ए-जाना'
थे चैन से हम इस 'दौर-ए-वफ़ा' से पहले

वह फ़क़त रंग ही भर्ती रही अफसानों में
सब पहुंच भी गए मंजिल पे 'सिया' से पहले

ज़िंदगी का लम्हा लम्हा प्यार में


ऐसे इन्सां कम ही मिलते हैं हमें संसार में
जो बिताएं ज़िंदगी का लम्हा लम्हा प्यार में

क्या बताएं हिज्र की शब किस तरह से की बसर
"करवटें लेते रहे शब भर फ़िराक़े यार में"

क्या करूं अब उसके पीछे पीछे चलना है मुझे
मेरा बेटा मुझ से आगे बढ़ गया रफ़्तार में

तेरा इमान ऐ बशर इक क़ीमती सामान था
चंद सिक्कों के लिए बेचा जिसे बाज़ार में

इश्क वाले ऐ :सिया: कब इश्क से बाज़ आयेंगे
कोई राजा लाख चुन्वाए उन्हें दीवार में

दिल से खालिक़ की इबादत चाहिए

कब हमें उनकी इनायत चाहिए
सिर्फ थोड़ी सी मोहब्बत चाहिए

खुवाब तो हमने भी देखे हैं बहुत
ज़िंदगी में कुछ हकीक़त चाहिए

बन्दगी को चाहिए दिल का ख़ुलूस
दिल से खालिक़ की इबादत चाहिए

उम्र भर सुब को नसीहत शेख़ जी
आपको भी कुछ नसीहत चाहिए

ऐ सिया क़दमों को मां के चूम लो
तुम को गर दुनिया में जन्नत चाहिए

Tuesday 11 October 2011

तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥

जो सीने में धड़कता दिल न होता
तो कोई प्यार के क़ाबिल न होता॥

अगर सच मुच वह होता मुझ से बरहम
मिरे दुःख में कभी शामिल ना होता॥

किसी का ज़ुल्म क्यूँ मज़लूम सहता
अगर वह इस क़दर बुज़दिल न होता॥

नज़र लगती सभी की उस हसीं को
जो उसके गाल पर इक तिल न होता॥

ज़मीर उसका अगर होता न मुर्दा
तो इक क़ातिल कभी क़ातिल न होता॥

:सिया: महफ़िल में रौनक़ ख़ाक होती
अगर इक रौनक़े महफ़िल न होता॥

Thursday 6 October 2011

हम तो बेघर हैं किधर जायेगे

जिनके घर हैं वो तो घर जायेगे
हम तो बेघर हैं किधर जायेगे

ये खुला आसमाँ हैं छत मेरी
इस ज़मीन पर ही पसर जायेगे

हम तो भटके हुए से राही है
क्या खबर है की किधर जायेगे

आपके ऐब भी छुप जायेगे
सारे इलज़ाम मेरे सर जायेगे

नाम लेवा हमारा कौन यहाँ
हम तो बेनाम ही मर जायेगे

न कोई हमनवां न यार अपना
हम तो तनहा है जिधर जायेगे

ए 'सिया' मत कुरेद कर पूछो
फिर दबे ज़ख्म उभर जायेगे

Sunday 2 October 2011

फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए


फख्र से इस जुर्म का इकरार होना चाहिए 
इश्क है तो इश्क का इजहार होना चाहिए 

इस जहाँ में कोई ग़म ख्वार होना चाहिए 
सबके दिल में प्यार ही बस प्यार होना चाहिए 

तेज़ चलने के लिए मुझसे ही क्यूं कहते है आप
आप को भी कुछ तो कम रफ़्तार होना चाहिए

ग़मज़दा देखे मुझे और हंस पड़े बेसाख्ता
क्या भला ऐसा किसी का यार होना चाहिए

उफ़ तेरा तिरछी नज़र से मुस्कुरा कर देखना 
तीर नज़रों का जिगर के पार होना चाहिए 

खुद परस्ती हर तरफ फैली है इतनी क्यों 'सिया
' न किसी की राह में दीवार होना चाहिए

मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥

सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ
दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥

कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं
राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥

अपने नग़मे गाती हूँ तनहाई में
वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ॥

प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है
अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ

तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है
मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥
मनमंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"
आशाओं के दीप जलाती रहती हूँ॥