इक उदासी का सिलसिला क्यूं है
तू है मेरा तो फासिला क्यूं है
हिज्र में तेरे रात-दिन की तड़प
इस मुहब्बत का ये सिला क्यूं है
मेरी क़िस्मत को सोचती हूँ मैं
तुझसा बेदर्द ही मिला क्यूं है
जब कोई वास्ता नहीं बाहम
तेरी यादों का काफिला क्यूं है
राह कोई हो, पार कर लेंगे
आज दिल में ये हौसला क्यूं है
जिस्म में रूह यूँ लगे है "सिया"
दश्ते वीरां में ये किला क्यूं है
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजब कोई वास्ता नहीं बाहम
तेरी यादों का काफिला क्यूं है