Monday 28 February 2011

ग़ज़ल


एक दिल फरेब से हमें क्यूँ प्यार हो गया
ये कैसी बेकसी है, कि दिल ज़ार हो गया

उसने हमें जो दर्द दिया हम क्या बयां करें 
वो तो मेरे रकीब का हमवार हो गया 

एक बार कि खता तो चलो माफ़ भी करें 
लेकिन ये उनका इश्क में हर बार हो गया

अब ना कोई यकीन, ना कोई ऐतबार है
दिल का महल तो आज फिर मिस्मार हो गया 

क्या है वफ़ा, क्या प्यार, क्या इश्क, इन दिनों 
लगता है जैसे  ये कोई बाज़ार हो गया 

हम तो गए थे लेके हथेली पे दिल "सिया"
उनकी तरफ से इश्क में इनकार हो गया 

सिया 

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